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________________ अभेद एकांतवाद का खण्डन ] ततीय भाग [ ३०३ तदविशेषे तत्सामर्थ्यस्यैवायोगात् प्रविभक्तपरमाणूनापि तत्प्रसङ्गात् । प्रविभक्त' त्वादेव न तेषां तत्सामर्थ्यमिति चेत्, 'तत एवान्यत्रापि तन्नेष्यते, केनचिदपि विशेषा' न्तरेण तद्विभक्तत्वानिराकरणात् । पृथिव्यादिभूतचतुष्टयस्थितिरेवं विभ्रममात्रं प्राप्नोति, सर्वदा परमाणुत्वाविशेषात् । इष्टत्वाददोष इति चेन्न प्रत्क्षादिविरोधात् । प्रत्यक्षं हि बहिर्वर्णसंस्थानाद्यात्मक स्थवीयांसमाकारमन्तश्च हर्षाद्यनेकविवर्तात्मकमात्मानं साक्षात्कुर्वद्भान्तं चेत्किमन्यदभ्रान्तं यत्प्रत्यक्षलक्षणं बिभृयात् ? प्रत्यक्षाभावे च कुतोनुमानं न विरुध्यते' ? न च प्रत्यक्षादिविपरमाणुओं के संघात-स्कंध में भी धारण आकर्षण आदि नहीं होने चाहिये। जैसे कि परमाणु के विभाग में नहीं होते हैं। बौद्ध-विभक्त परमाणुओं से स्कंध रूप परमाणुओं में विशेष भेद की उत्पत्ति होने से धारण, आकर्षण आदि संगत नहीं हैं। जैसे कि जल सहित अधो मुख कमंडलु अथवा बांस की रज्जू आदि । अर्थात् अधोमुख कमंडलु में धारण और बांस की रस्सी में आकर्षण के समान । जैन-यदि ऐसा कहते तो तब तो उन संहत परमाणुओं में उत्पन्न हुआ भी विशेष विभागभेदैकांत पक्ष का निराकरण नहीं करता है। ___ यदि अणुओं में भेद के एकांत का निराकरण करोगे तब तो परमाणुओं का विरोध हो जायेगा, अर्थात् स्कंध ही रहेगा। क्योंकि अनेक परमाणुओं में एकत्व परिणाम रूप स्कंध की ही उत्पत्ति हो जाती है। बौद्ध-प्रविभक्त भिन्न-भिन्न परमाणुओं से संहत-मिले हुये परमाणुओं में समान लक्षण रूप अभिन्नता नहीं है। अत: मिले हुये परमाणुओं में धारणादि सामर्थ्य विशेष हैं। किन्तु परमाणुपना नष्ट नहीं हो जाता है कि जिससे कार्य कारण परमाणुओं में समानता न होवे । अर्थात् होगी ही होगी। जैन-ऐसा नहीं कहना ! क्योंकि सर्वथा उन कार्य कारण परमाणुओं की समानता होने पर धारणाकर्षणादि सामर्थ्य ही असंभव है। अन्यथा भिन्न-भिन्न परमाणुओं में भी उस धारणादि क्रिया का प्रसंग प्राप्त हो जायेगा। बौद्ध-भिन्न-भिन्न होने से ही उन परमाणुओं में वह धारणाकर्षणादि सामर्थ्य नहीं है। जैन - यदि ऐसा कहो तब तो उसी प्रकार से उन मिले हुए परमाणुओं में भी वह धारणा- . 1 अत्राह वै० प्रविरलत्वादेव तेषां प्रविभक्तपरमाणू ना धारणादिसामर्थ्य नेति चेत् । दि० प्र०। 2 स्या० वदति हे वै० तत एव प्रविभक्तत्वादेवान्यत्रापि संहतपरमाणुष्वपि तत् धारणाकर्षणादिसामर्थ्य नाङ्गीक्रियते = कुतः संघातावस्थायां परमाणवो विशिष्टरूपासंघातावास्थायामविशिष्टा इति लक्षणेन केनचिद्विशेषेण कृत्वा परमाणुविरलत्वानिषेधात् = तर्हि एवं सन्ति भूम्यादिचतुष्कस्य स्थितिविभ्रममात्रं लभते कुतः सर्वदा संहतासंहतावस्थोभयतः परमाणुत्वेन कृत्वा विशेषाभावात् । दि० प्र० । 3 परमाणुस्वमात्रेण । ब्या० प्र० । 4 निर्विकल्पकप्रत्यक्षाभावे स्थूलवहिरन्तर्वस्तुग्राहकानुमानस्य बाध काभावाभाष्ये आदिशब्दगृहीतानूमानविरोधोपि संभवत्येवेति भावः। दि० प्र०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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