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भेद एकांतवाद का खण्डन ] तृतीय भाग
[ २८७ समाप्तेरसंभवात् तद्बत्हुवा'पत्तेराश्रयस्वरूपवत् । न च सर्वत्राविच्छेदात्तदेकत्वं, तदसिद्धेः प्रागभावादिषु सत्तासमवायासंभवाद्विच्छेदोपलम्भात् ।
[ सामान्यसमवायचर्चाप्रसंगे प्रागभावादीनां विचारः। ] प्रागभावादीनां सर्वदा भावविशेषणत्वान्न तत्र तद्विच्छेद इति चेन्नैवमभावस्थापि सर्वगतत्वैकत्वप्रसङ्गात्, सर्वत्रासत्प्रत्ययाविशेषादविच्छेदाविशेषाच्च । यथैव हि द्रव्यादिषु सत्प्रत्ययोऽविशिष्ट स्तथा पररूपतोऽसत्प्रत्ययश्च । यथा' चाभावस्य शश्वद्भावपरतन्त्रत्वं तथा प्रागभावादि-अनित्य कार्यों में ये दोनों सत्ता और समवाय असंभव हैं क्योंकि अविच्छेद की उपलब्धि हो रही है।
[ सामान्य और समवाय की चर्चा के प्रसंग में प्रागभाव आदि का विचार किया जा रहा है । ]
शंका-प्रागभावादि हमेशा ही भाव रूप विशेषण वाले हैं, अत: वहां उनका विच्छेद नहीं होता है।
समाधान-ऐसा नहीं कहना। इस प्रकार से तो अभाव भी सर्वगत और एक रूप हो जायेगा। क्योंकि सर्वत्र असत् प्रत्यय-समान है और विच्छेद का न होना भी समान है जिस प्रकार से द्रव्यादिकों में सत्प्रत्यय समान रूप से हैं, उसी प्रकार से परद्रव्यादि चतुष्टय से सभी द्रव्यादिकों में असत्-अभाव प्रत्यय भी समान रूप से हो रहा है। और जिस प्रकार से चार प्रकार का अभाव हमेशा भाव के आश्रित-परतंत्र है उसी प्रकार से भाव भी अभाव के आश्रित परतंत्र है और वह अभाव के अविच्छेद को सिद्ध करता है । अर्थात पट स्वरूप में घट स्वरूप का अभाव है। अतः अभाव ही वर्तन क्रिया से अन्वय सम्बन्ध रखता है इसलिए वही प्रधान है। वह पर रूप से असत् रूप ही भाव प्रतीति में आ रहा है अन्यथा सर्व संकर दोष का प्रसंग आ जायेगा। पुनः 'यह घट है, यह पट है' इस प्रकार से भाव रूप पदार्थ विशेष की व्याख्या में विरोध हो जायेगा।
1 सामान्यबहुत्वायत्तेः । दि० प्र०। 2 किञ्च हे वैशेषिक ! सर्वत्रार्थेषु असत्प्रत्ययस्याविच्छेदात्। तस्य समवायस्यैकत्वं यदुच्यते त्वया तन्न भवति । कृतस्तस्य सत्प्रत्ययाविच्छेदस्याघटनात । कस्मात प्रागभावप्रहवंसाभावा भावात्यन्ताभावेषु सत्तासमवायो न संभवति यतः सत्प्रत्ययस्य विच्छेदो दृश्यते यतः । दि० प्र०। 3 आह वैशेषिक: प्रागभावादयश्चत्वारो भावाः सदाभावविशेषणानियतः ततः चतुर्थभावेषु सत्ताविच्छेदो नास्तीति चेत् स्याद्वादी वदत्येवं न । कूतो भावोपि सर्वगतक: प्रसजति यतः कस्मात्सर्वत्रार्थेष्वसत्प्रत्ययेन विशेषाभावात् कोर्थः यथाभावस्तथाऽभावः । दि० प्र०। 4 सामान्यसमवायप्रकारेण । ब्या० प्र० । 5 स्याद्वाद्याह । यथाद्रव्यगुणकर्मादिपदार्थेषु सत्प्रत्ययो विशिष्टः कोर्थः घट: सन् पष्ट: सन्नित्यादि तथापररूपेणासत्प्रत्ययो विशिष्टश्च यथाऽभावो भावाधीनस्तथा भावश्चाभावाधीनस्तथाऽभावश्च भावाधीनः कस्मात्तस्याभावस्य निरन्तरत्वसाधकेन पररूपेणासंबन्धे सति केवलं प्रतीयते यतोऽन्यथापररूपेण संबन्धेसति भाव: प्रतीयते चेत्तदा भावाभावयोः सङ्करत्वमायाति । सङ्करे सति को दोष इत्युक्त, आह तदाभावस्थितिविरुद्धयते यतः । दि० प्र०। 6 साधारणः । ब्या० प्र०। 7 नन्वभावस्याविच्छेदो सिद्धो भावेष्वभावादिति चेदाह । ब्या० प्र०।
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