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________________ नयायिक का कहना है कि दुःख, जन्म, प्रवृत्ति, दोष और मिथ्याज्ञान का उत्तरोत्तर अभाव हो जाने से मोक्ष हो जाती है, क्योंकि दुःखादिकों का अभाव तत्त्वज्ञान पूर्वक ही होता है । मिथ्याज्ञान से दोषों की उद्भूति अवश्य होती है । इस पर जैनाचार्यों का कहना है कि मिथ्याज्ञान का सम्पूर्णतया अभाव कैसे होगा ? पुन: मिथ्याज्ञान से दोष आदि परम्परा चलती ही रहेगी। स्याद्वाद का आश्रय लेने वाले जैनाचार्यों का कहना है कि जो एकांत से यह कहा जाता है कि अज्ञान से बन्ध और ज्ञान से मोक्ष होता है, सो असम्भव है क्योंकि सभी को किसी न किसी विषय में अज्ञान तो है ही; पुनः किसी को मोक्ष हो ही नहीं सकेगा । इसलिये वास्तविक बात तो यह है कि मोह सहित अज्ञान से बंध होता है और मोह रहित-रागद्वेषादि कषायों से रहित अज्ञान अर्थात् अल्पज्ञान से मोक्ष होता है। क्योंकि मोहकर्म रहित उपशांत कषाय और क्षीणकषाय वाले ऐसे ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में यद्यपि अज्ञान है, फिर भी उनके बंध नहीं होता है, इन दोनों गुणस्थानों में केवलज्ञान न होने से अज्ञान ही है। वस्तुतः केवलज्ञान की अपेक्षा श्रुतज्ञान आदि क्षायोपशमिक ज्ञान अल्प ही हैं । वह अल्पज्ञान मोह रहित छद्मस्थ वीतरागी के चरम समय में विद्यमान है, उसी से ही उत्तर क्षण में तेरहवें गुणस्थान में केवलज्ञान प्रगट हो जाता है जिसे कि आर्हत्य लक्षण अपरमोक्ष कहते हैं। किन्तु मिथ्यादृष्टि से लेकर दश गुणस्थान तक मोह सहित ज्ञान कर्म बन्ध का ही कारण है । स्याद्वादसिद्धि-अतः स्याद्वाद प्रक्रिया से समझना चाहिये१. कथंचित् अज्ञान से बन्ध होता है, क्योंकि वह मिथ्यात्व, कषायादि से सहित है। २. कथंचित् अज्ञान से बन्ध नहीं होता है, क्योंकि वह मिथ्यात्व, कषायादि से रहित है। ३. कथंचित् अज्ञान से बन्ध होता है और नहीं होता है, क्योंकि क्रम से मिथ्यात्वादि सहित और रहित दोनों की विवक्षा है। ___ कथंचित् अवक्तव्य है क्योंकि दोनों अपेक्षाओं को एक साथ कह नहीं सकते हैं । कथंचित् अज्ञान से बन्ध और अवक्तव्य है, क्योंकि क्रम से मोह सहित की और युगपत् दोनों की विवक्षा है। कथंचित् अज्ञान से अबन्ध और अवक्तव्य है, क्योंकि क्रम से मोह रहित और युगपत् दोनों की अपेक्षा है। ७. कथंचित् अज्ञान से बंध और अबंध तथा अवक्तव्य है, क्योंकि कम से मोहसहित और मोहरहित की तथा युगपत् दोनों की अपेक्षा है । इसी द्रकार से मोहसहित अल्पज्ञान से मोक्ष नहीं होता है। तथा मोहरहित अल्पज्ञान से भी मोक्ष होता है इसमें भी सप्तभंगी प्रक्रिया घटित करना चाहिये । प्रमाण और नय है भगवन् ! आपके सिद्धान्त में तत्त्वज्ञान ही प्रमाण है । उसमें युगपत् सभी पदार्थों का अवभासनप्रकाशन करने वाला केवलज्ञान है और स्यावाद नय से संस्कृत मति, श्रुत आदि शेष ज्ञान क्रमभावी हैं । यहाँ पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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