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अनेकांत की सिद्धि ]
तृतीय भाग
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२४१
कार्योत्पादः क्षयो' हेतोनियमाल्लक्षणात्पृथक् ।
न 'तौ जात्याद्यवस्थानादनपेक्षाः खपुष्पवत् ॥८॥ उपादानस्य पूर्वाकारेण क्षयः' कार्योत्पाद एव हेतोनियमात् । यस्तु ततोन्यस्तस्य न हेतोनियमो दृष्टो यथाऽनुपादानक्षयस्यानुपादेयोत्पादस्य च। नियमश्च हेतोरुपादानक्षयस्योपादेयोत्पादस्य च । तस्मादुपादानक्षय एवोपादेयोत्पादः । न तावदत्रासिद्धो1 हेतुः
उत्थानिका-उसी का स्पष्टीकरण करते हैं
उपादान कारण का जो क्षय वही कार्य का है उत्पाद । एक हेतु है दोनों में फिर भी लक्षण से भिन्न विभाग ॥ जाती आदि अवस्थित कारण से दोनों में भेद नहीं ।
उत्पादादि यदि अनपेक्षित गगनपुष्पवत् असत् सही ।।५८।। कारिकार्थ-कार्य का उत्पाद ही एक हेतु नियम से अपने मृत्पिड रूप उपादान कारण का विनाश है । उत्पाद और विनाश ये दोनों अपने-अपने लक्षण से भिन्न-भिन्न हैं तथा जाति सामान्य आदि के अवस्थान से ये दोनों भिन्न नहीं हैं। परस्पर में अनपेक्ष उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य ये तीनों ही खपुष्प के समान हैं ।।५।।
___उपादान का पूर्वाकार से क्षय ही कार्य का उत्पाद है और वह नियम से एक हेतुक है । अर्थात् जो हेतु कार्य के उत्पाद का है वही हेतु पूर्वाकार के क्षय का है।
____ किंतु जो उपादान क्षय से अन्य है उस हेतु का नियम नहीं देखा जाता है। जैसे कि अनुपादान क्षय का और अनुपादेय रूप उत्पाद का हेतु नहीं है। अर्थात् घट के अनुपादान तंतु हैं, उनका क्षय होना अग्नि आदि भिन्न हेतुक है एवं तन्तु की अपेक्षा से घट अनुपादेय है उस घट का उत्पाद मिट्टी
1 प्रागभावस्य क्षयः पक्षः कार्योत्पादो भवतीति साध्यो धर्मः । मुद्गरादिव्यापारलक्षणस्य हेतोनिश्चयात् । तौ क्षयोत्पादौ लक्षणात्स्वरूपात पृथभिन्नो भवतः । जात्याद्यनवस्थात्सत्सामान्यात् । तो क्षयोत्पादौ भिन्नी न स्तः । एकस्मिन् वस्तुन्युत्पादादयस्त्रयः परस्परं निरपेक्षा न सन्ति । यथा खपुष्पं नास्ति लोके इति कारिकार्थः । =यस्तूत्पादस्तक्षयात् अन्यो भिन्नस्तस्य हेतोः सहकारिकारणस्य निश्चयो न दृष्टः यथा घटापेक्षयान्ततवोऽनुषादानं तस्य क्षयस्य तत्त्वपेक्षया घटः अनुपादेयस्तस्योपादानस्य च हेतोनियमो न दृष्टः । दि० प्र० । 2 स्वकीयस्वकीयस्वरूपात् । दि०प्र० । 3 भिन्नौ । दि० प्र०। 4 उत्सादविनाशौ । दि० प्र०। 5 उत्पादादयः । दि० प्र० । 6 असद्रूपाः । दि० प्र०। 7 पक्षः । ब्या०प्र०। 8 साध्यो धर्मः । ब्या० प्र०। 9 कारणस्य । ब्या० प्र०। 10 एकमेवकारणम् । ब्या०प्र०। 11 अत्राह परः अत्रानुमाने हेतोनियमादिति हेतुः असिद्ध इत्युक्ते स्याद्वाद्याह एवं न । कस्मात्कार्योत्पादकारणविनाशयोः कपालघटलक्षणयोरेकमुद्गरादिव्यापारहेतुनियमः सुप्रतीतोस्ति यतः । पुनः कस्मात्तयोरुत्पादविनाशयोमध्ये एकस्योत्पादस्य सहेतुकत्वमन्यस्य विनाशस्य निर्हेतुकत्वमिति सौगताभ्युगतं नियमवचनं प्राप्रपञ्चेन निराकृतं यतः । दि०प्र०।
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