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जैन- यह कथन भी सारहीन है, क्योंकि ग्रहों के संचार एवं चन्द्रग्रहण आदि ज्योतिष शास्त्र से ही सिद्ध हैं । अतः हेतु, आगम, प्रत्यक्ष और अनुमान इन सभी से ही उपेय तत्त्व सिद्ध होते हैं ।
इन दोनों का निरपेक्ष उभयेकात्म्य भी श्रेयस्कर नहीं है । तथा स्याद्वाद के अभाव में अवाच्य तत्त्व कहना भी असंभव है।
___ स्याद्वाद सिद्धि-वक्ता के आप्त न होने पर जो हेतु से सिद्ध होता है वह हेतु साधित है । एवं वक्ता जब आप्त होता है तब उसके वाक्य से जो सिद्ध होता है वह आगम साधित है। "यो यत्र अवंचकः स तत्राप्तः" जो जिस विषय में अवंचक-अविसंवादक है वह आप्त है, इससे भिन्न अनाप्त हैं ।
कथंचित् सभी वस्तुयें हेतु से सिद्ध हैं क्योंकि उनमें इंद्रिय और आप्त वचन की जपेक्षा नहीं है । कथंचित् सभी आगम से सिद्ध हैं क्योंकि इंद्रिय और हेतु की अपेक्षा है। कथंचित् उभय रूप हैं क्योंकि क्रम से दोनों की विवक्षा है । कथंचित् अवक्तव्य हैं क्योंकि युगपत् दोनों की विवक्षा है। कथंचित् हेतु से सिद्ध और अवक्तव्य हैं क्योंकि क्रम से हेतु की और युगपत् दोनों की विवक्षा है । कथंचित् आगम से सिद्ध और अवक्तव्य हैं क्योंकि क्रम से आगम की और युगपत् दोनों की विवक्षा है। कथंचित् उभय रूप और अवक्तव्य हैं क्योंकि क्रम से और युगपत् दोनों की विवक्षा है।
जैन सिद्धांत में 'प्रमाणनयरधिगमः' इस सूत्र के द्वारा प्रमाण और नयों से वस्तु तत्त्व को समझने का उपदेश दिया गया है। प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष की अपेक्षा दो भेद हैं। इंद्रिय और मन से होने वाले ज्ञान को कहीं (न्याय ग्रन्थों में) सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष कहा है तथा स्मति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम ये परोक्ष प्रमाण हैं। इन सभी के द्वारा वस्तु तत्त्व को ठीक से समझना चाहिये। इस छठे परिच्छेद में ७६ ७८ तक तीन कारिकायें हैं।
सप्तम परिच्छेद अंतरंगार्थ एवं बहिरंगार्थ के एकांत का खंडन एवं स्याद्वाद सिद्धि
विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध कहता है कि अंतरंगअर्थ विज्ञानमात्र ही एक तत्त्व है। दिखने वाले बहिरंग पदार्थ कुछ भी नहीं हैं ये तो कल्पनामात्र हैं। ये सब बाह्य पदार्थ इंद्रजालिया खेल के समान हैं अथवा स्वप्न के राज्य के समान हैं।
इस पर जैनाचार्यों का कहना है कि आपकी इस एकांत मान्यता से तो हेतु और आगम से सिद्ध मोक्ष तत्त्व एवं अनुमान, आगम आदि सभी प्रमाण आदि मिथ्या हो जायेंगे। बाह्य पदार्थ भी जो प्रत्यक्ष में दिख रहे हैं वे सर्वथा काल्पनिक नहीं हैं अन्यथा नर, नारकादि पर्यायें और उनके निमित्त से होने वाले सुख-दुःख भी काल्पनिक ही कहे जायेंगे और तब संसार भी काल्पनिक ही सिद्ध होगा तथा संसारपूर्वक होने वाला मोक्ष भी काल्पनिक ही रहेगा। इस व्यवस्था से तो भापके बुद्ध भगवान को काल्पनिक कहने पर तो मोक्ष भी काल्पनिक एवं आपका मत भी काल्पनिक ही हो जायेगा।
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