________________
( २७ ) स्याद्वाद प्रक्रिया-कथंचित् धर्म और धर्मी आपेक्षिक सिद्ध हैं क्योंकि एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते हैं।
कथंचित् ये दोनों अनापेक्षिक सिद्ध हैं क्योंकि इन दोनों का स्वरूप स्वतः सिद्ध है ।
कथंचित् ये दोनों आपेक्षिक और अनापेक्षिक दोनों रूप हैं । एक साथ दोनों अपेक्षाओं का कथन न हो सकने से कथंचित् ये अवक्तव्य हैं।
क्रम से आपेक्षिक और युगपत् दोनों की विवक्षा होने से कथंचित् आपेक्षिक अवक्तव्य हैं। कम से अनापेक्षिक और युगपत् दोनों की विवक्षा से कथंचित् अनापेक्षिक अवक्तव्य हैं।
क्रम से और युगपत् दोनों की विवक्षा होने से कथंचित् आपेक्षिक, अनापेक्षिक अवक्तव्य हैं ।
इस प्रकार स्याद्वाद के द्वारा ही वस्तुतत्त्व की सिद्धि होती है। इस पंचम परिच्छेद में ७३ से ७५ तक तीन कारिकाएं हैं।
षष्ठ परिच्छेद
ऐकांतिक हेतुवाद और आगमवाद का खंडन
बौद्ध हेतु से ही तत्त्व की सिद्धि मानते हैं, ब्रह्माद्वैतवादी आगम से ही परम ब्रह्म को सिद्ध करते हैं । वैशेषिक तथा बौद्ध प्रत्यक्ष और अनुमान इन दो प्रमाणों से ही तत्त्वों की सिद्धि मानते हैं । आचार्य इन सबका क्रम से खंडन करते हैं।
बौद्ध- सभी उपेय तत्त्व हेतु से ही सिद्ध हैं प्रत्यक्ष से नहीं, क्योंकि जो युक्ति से घटित नहीं होता उसे हम देखकर भी श्रद्धा नहीं करते हैं।
जैन-आपके यहां हेतु को ही प्रमाण मानने से तो प्रत्यक्ष, आगम आदि सभी अप्रमाण हो जायेंगे। पुनः अनुमान ज्ञान भी उत्पन्न नहीं हो सकेगा तथा शास्त्र के उपदेश से भी कोई प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा और तब तो आपके बुद्ध भगवान भी अप्रमाण हो जावेंगे क्योंकि बुद्ध भगवान का ज्ञान हेतु से नहीं हो सकता है ।
ब्रह्माद्वैतवादी-सभी तत्त्व आगम से हो सिद्ध हैं क्योंकि अनुमान से सिद्ध भी वाक्य यदि आगम से बाधित है तो वह अग्राह्य है । जैसे "ब्राह्मण को मदिरा पीना चाहिये, क्योंकि वह द्रव द्रव्य है दूध के समान ।" यह कथन अनुमान से तो सिद्ध है किन्तु "ब्राह्मणो न सुरां पिबेत्" इत्यादि भागम से बाधित है और हमारे यहां परम ब्रह्म भी तो आगम से ही सिद्ध है।
जैन-इस प्रकार आगम को ही प्रमाण मानने पर तो आपके यहां अन्य लोगों द्वारा विरुद्ध अर्थ को कहने वाले आगम भी प्रमाण हो जावेंगे क्योंकि आगम-आगम रूप से तो सभी समान हैं। यदि आप अपने आगम को ही समीचीन कहो तो उसकी समीचीनता का निर्णय भी तो युक्ति-हेतु से ही किया जायेगा। तब आपका आगम भी तो हेतु सापेक्ष ही रहा अतः एकांत मान्यता ठीक नहीं है।
वैशेषिक-सौगत-प्रत्यक्ष और अनुमान से ही तत्त्वों की सिद्धि होती है आगम से नहीं।
हा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org