________________
अष्टसहस्री
[ तत्त्वमवाच्यं कथं ? ]
अर्थस्यानभिलाप्यत्वमभावाद्वक्तु रशक्तेरनवबोधाद्वा ? प्रकारान्तरासंभवात्' । ननु च मौनव्रतात्प्रयोजनाभावाद्भयाल्लज्जादेर्वाऽनभिलाप्यत्वसिद्धेः कथं प्रकारान्तरासंभव इति चेन्न, मौनव्रतादीनामशक्यत्वेन्तर्भावात् तेषां करणव्यापाराशक्तिनिमित्तत्वाच्च ' । न चैवमनवबोधस्ततः प्रकारान्तरं न स्यात् तत्त्वावबोधे सति करणव्यापाराशक्तावप्यन्तर्जल्पसंभवात् । तत्त्वावबोधाभावेपि च करणव्यापारशक्तिसद्भावात् । अनवबोधाशक्यत्वयोरिह बुद्धिकरणपाटवापेक्षत्वात् प्रकारान्तरत्वमेव । न च सर्वत्र तदभावो युक्तः, कस्यचित्क्वचिदवबोधसद्भावात् सुगतस्य प्रज्ञापारमितत्वात् 'क्षमा मैत्रीध्यानदानवीर्यशील प्रज्ञाकरुणोपायप्रमो'
१८६ ]
[ तत्त्व अवाच्य क्यों है ? ]
पदार्थ का "अवाच्यत्व" उसके अभाव से है या वक्ता में कहने की शक्ति नहीं होने से है अथवा उसका ज्ञान न होने से वह अवाच्य है ? क्योंकि इन तीन के सिवा चौथा प्रकार सम्भव नहीं है।
[ तृ० प० कारिका ५०
सौगत - मौन व्रत लेने से प्रयोजन का अभाव होने से भय से अथवा लज्जा से अवाच्यत्व सिद्ध है । अत: भिन्न प्रकार असंभव कैसे है ?
जैन - ऐसा नहीं कह सकते। क्योंकि मौन व्रतादिकों का अशक्यत्व में एवं उनमें इन्द्रिय, तालु आदि रूप करण के व्यापार की अशक्ति ही निमित्त है मौन व्रतादिकों का अशक्य में अन्तर्भाव किया तो
।
बौद्ध ऐसा कहता है कि अनवबोध और अशक्ति ये दोनों एक कारण पूर्वक होने से अबोध का अशक्य में अंतर्भाव हो जाता है। इस पर जैन कहते हैं कि- इस प्रकार से अबोध अशक्ति से भिन्न प्रकार नहीं है ऐसा भी नहीं कह सकते। क्योंकि तत्व का अवबोध होने पर यदि इन्द्रियादिकों के व्यापार की शक्ति नहीं है तो भी अंतर्जल्प संभव है । और तत्व ज्ञान का अभाव होने पर भी इन्द्रियों के व्यापार की शक्ति का सद्भाव देखा जाता है इसलिये अबोध को अशक्ति में अंतर्भूत करने के लिये व्यतिरेक एवं अन्वय दोनों ही नहीं हैं ।
अंतर्भाव हो जाता है
अर्थात् जैनाचार्य ने
यहाँ अनवबोध और अशक्यत्व इन दोनों में ही क्रम से बुद्धि और करण की पटुता की अपेक्षा होने से भिन्न-भिन्न प्रकारता है ही है । अर्थात् अनवबोध बुद्धि की अपेक्षा रखता है और अशक्त इन्द्रियों की पटुता की अपेक्षा रखती है अतः दोनों भिन्न हैं ।
Jain Education International
1 प्रकारान्तराभावात् । इति पा० । ब्या० प्र० । 2 तासः | ब्या० प्र० । 3 अनवबोधाशक्यत्वयोरेककारणपूर्वकत्वेनाशक्यत्वेऽनवबोधस्यांतर्भावः स्यादित्युक्त आह । व्या० प्र० । 4 कारिकायाम् । व्या० प्र० । 5 प्रभावः । व्या० प्र० । 6 पदार्थक्रिया । ब्या० प्र० ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org