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बौद्ध कहता है कि 'वस्तु सत् है, असत् है, उभय रूप है, अनुभय रूप है' ये चार विकल्प ही सकते हैं और ये चारों हो विकल्प अवाच्य हैं-कहे नहीं जा सकते अतः 'वस्तु अवाच्य है।' जैनाचार्य कहते हैं कि भाई ! 'वस्तु अवाच्य है' इस वाक्य से भी पुन: तुमने कैसे कहा ? इस वाक्य से वाच्य कर देने से वह अवाच्य कहां रही ? यह तो ऐसा है कि कोई मुंह से कहे कि 'मैं मौनव्रती हूं' । बौद्ध की एक और मान्यता बहुत ही विचित्र है वह कहता है कि विनाश अहेतुक है । घड़े पर मुद्गर का प्रहार हुआ वह फूट गया, तो उसका कहना है कि मुद्गर के निमित्त से घड़ा नहीं फूटा है प्रत्युत स्वभाव से ही फूटा है । हां, मुद्गर से निमित्त से कपाल-टुकड़े अवश्य उत्पन्न हुए हैं । जैनाचार्य तो धड़े के फूटने में और कपाल के उत्पन्न होने में, दोनों में एक मुद्गर को ही हेतु मानते हैं, क्योंकि इन्होंने पूर्वाकार घट का विनाश और उत्तराकार-कपाल का उत्पाद इन दोनों को एक हेतुक और एक समय में ही माना है । घट का फूटना ही तो कपाल का उत्पाद है।
इस बेचारे बौद्ध ने तो कार्य को ही अहेतुक माना है किन्तु आजकल कुछ ऐसे भी लोग हैं जो विनाश और उत्पाद दोनों को ही अहेतुक कह देते हैं, उनका कहना है कि कार्य का उत्पाद होना था तब निमित्त उपस्थित हो गया वह सर्वथा अकिचित्कर है उस बेचारे ने क्या किया है ? ऐसा कहने वालों की दशा तो बौद्धों से भी अधिक शोचनीय है ।
बौद्ध के सर्वथा क्षणिक मत में अपने किये हये को नहीं भोगना और दूसरे के किये हए का फल पाना ये दोष भी आ जाते हैं। जैसे किसी व्यक्ति-आत्मा ने हिंसा का भाव किया वह उसी क्षण नष्ट हो गया, दूसरे आत्मा ने आकर हिंसा कर दी वह भी नष्ट हो गया, तीसरे आत्मा को पाप का बंध हो गया, उसी क्षण वह भी नष्ट हो गया, चौथे आत्मा ने आकर उसका फल दुख भोगा । अहो ! यह सिद्धांत बहुत ही हास्यास्पद है। सप्तभंगी प्रक्रिया
जैन सिद्धान्त के अनुसार तो सभी पदार्थ कथंचित् नित्य हैं क्योंकि द्रव्याथिक नय से वे कभी नष्ट नहीं होते हैं।
सभी पदार्थ कथंचित् अनित्य हैं क्योंकि पर्यायों का विनाश और उत्पाद देखा जाता है ।
सभी पदार्थ कथंचित् नित्य और अनित्य उभय रूप हैं क्योंकि क्रम से द्रव्याथिक और पर्याय थिक दोनों नयों की अपेक्षा है।
सभी पदार्थ कथंचित् अवक्तव्य हैं क्योंकि एक साथ दोनों नयों की विवक्षा होने से दोनों धर्म एक साथ कहे नहीं जा सकते हैं।
सभी पदार्थ कथंचित् नित्य और अवक्तव्य हैं, क्योंकि कम से द्रव्यार्थिक नय और युगपत् दोनों की विवक्षा है।
सभी पदार्थ कथंचित् अनित्य और अवक्तव्य इस छठे भंग रूप हैं क्योंकि क्रम से पर्यायाथिक नय और युगपत् दोनों नयों की विवक्षा है।
___ सभी पदार्थ कथंचित् नित्यानित्य और अबक्तव्य हैं क्योंकि क्रम से दोनों नय और युगपत दोनों नयों की अपेक्षा है।
इस प्रकार सप्तभंगी प्रक्रिया से सभी बातें व्यवस्थित हैं। इस तृतीय परिच्छेद में ३७ से ६० तक २४ कारिकाएं हैं।
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