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क्षणिक एकांत का निराकरण ] तृतीय भाग
[ १६१ निमित्तसद्भवात् तन्निमित्तस्यार्थक्रियाकारित्वस्य सकलप्रमाणोपलम्भस्य च प्रसिद्धेविरोधाद्यसंभवाच्च । तदेवं क्षणिकैकान्तपक्षे,
न हेतुफलभावादिरन्यभावादनन्वयात् ।
सन्तानान्तरवन्नकः सन्तानस्तद्वतः पृथक् ॥४३॥ क्षणिकैकान्तपक्षेपीति विवर्तते । तेन पूर्वोत्तरक्षणानां न हेतुफलभावो वास्यवासकभाव1'कर्मफलसंबंध:12 प्रवृत्त्यादिर्वास्ति, सर्वथाऽनन्वये सत्यन्यभावात्। संतानान्तरवत् । तेषामेक
परस्पर निरपेक्ष सर्वथा अन्वय और सर्वथा विशेष का ही प्रतिषेध करने वाला कोई निमित्त नहीं है। क्योंकि तदुभयात्मक जात्यंतर वस्तु की ही विधि का नियम करने वाले हेतु देखे जाते हैं। और उन हेतुओं में सकल प्रमाणों से उपलब्ध अर्थक्रियाकारिता प्रसिद्ध है। एवं उसमें विरोध आदि दोष भी असंभव है । ऐसा समझना चाहिये ।
उत्थानिका-इसलिये क्षणिकैकांत पक्ष में असत् रूप कार्य नहीं हो सकता है और उपादान का नियम भी नहीं हो सकता है। आगे क्षणिकैकांत पक्ष में ही और भी दोषों को दिखाते हुये आचार्य कहते हैं
हेतुभाव फलभाव न होंगे, क्योंकि न अन्वय है उनमें । भिन्न-भिन्न संतान सदृश, है अन्यभाव पूर्वोत्तर में ।। पूर्वोत्तर क्षण में इक ही, संतान कहो तो ठीक नहीं।
क्योंकि निज वस्तु से इक, संतान पृथक् है कभी नहीं ॥४३॥ कारिकार्थ—इस क्षणिक एकांत पक्ष में भिन्न संतान के समान कारण-कार्यभाव आदि कुछ भी नहीं हो सकते हैं, क्योंकि इनमें अन्वय के न होने से भिन्नपना है। संतानी से पृथक् कोई एक संतान नहीं है ॥४३॥
___ "क्षणिककांतपक्षेऽपि" यह अनुवृत्ति चली आ रही है। इसलिये उन पूर्वोत्तर क्षणों में हेतुफल भाव-कारण-कार्यभाव नहीं है, अथवा वस्य-वासक भाव, कर्मफल संबंध, प्रवृत्ति आदि भी नहीं हैं। सर्वथा अन्वय के न होने पर अन्य भाव भिन्नरूपता है। जैसे कि भिन्न संतान में अन्वय के न होने से भिन्नरूपता है।
1 उपलब्धिः । इति । व्या० प्र० । 2 तदुभयरूपजात्यन्तरविधिनियमस्य निमित्तं तस्य। ब्या० प्र०। 3 विरोधा वीस्तादीनां अघटनाच्च । दि० प्र०। 4 वक्ष्ययाण प्रकारेण । दि० प्र०। 5 पुनर्दूषणंआहुराचार्याः । दि० प्र० । 6 आदिशब्देन वास्यवासकभावकर्मफलसम्बन्धं प्रवृत्त्यादीन्न ग्रहणम् । दि० प्र०। 7 सर्वथा अनन्वयेसति भिन्नत्वात् । दि० प्र०। 8 प्रकृतसन्तानादन्यः सन्तानः सन्तानान्तरं यथा सन्तानाद्भिन्नम् । दि० प्र०। 9 भिन्नोभवेत् । दि०प्र०। 10 अनुवर्तते । इति पा० । दि० प्र०। 11 क्रियायां विषयः कर्म । ब्या० प्र०। 12 बन्धः । इति पा० । ब्या० प्र०। 13 अन्यत्वात् । ब्या० प्र० ।
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