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________________ १०० ] अष्टसहस्री [ द्वि० ५० कारिका ३६ एकांत से भेद, अभेद, उभय अथवा अनुभय सिद्ध नहीं है क्योंकि इनकी स्वभावानुपलब्धि है अर्थात् ये भेदैकांत आदि स्वभाव से उपलब्ध नहीं होते हैं क्योंकि ये अपने स्वरूप से ही रहित हैं । प्रत्यक्षज्ञान में स्थूल स्वभाव से निरपेक्ष सूक्ष्म एवं सूक्ष्म से निरपेक्ष स्थूल पदार्थ ही नहीं झलकते हैं प्रत्युत परस्पर सापेक्ष ही झलकते हैं । क्योंकि निर्विकल्पज्ञान में परस्पर भिन्न अत्यासन्न परमाणु नहीं झलकते हैं । यदि बौद्ध कहें कि परमाणुओं को संवृति संवृत कर देती है-ढक देती है और अनादि वासना से असत्रूप स्थूल आकार झलका देती है। तब तो ये परमाणु प्रत्यक्षज्ञान में अपना आकार नहीं झलकाते हैं और मैं प्रत्यक्ष ज्ञान का विषय हूँ ऐसा घोषित करते हैं अतः ये मूल्य को दिये बिना ही वस्तु को ग्रहण करने वाले अमूल्यदानक्रयी ही हैं। यदि आप कहें कि उन अवयवों से अभिन्न के समान अवयवी समवाय सम्बन्ध से प्रतिभासित होता है यह बात भी असम्भव है । ये अवयव हैं यह अवयवो हैं एवं इन दोनों में यह समवाय है ये तीनों ही आकार आज तक हम किसी को भी प्रत्यक्ष से दिखाई नहीं देते हैं अतः ये तीनों ही अमूल्यदानक्रयी हैं। इस प्रकार से केवल अणु-अणु रूप सूक्ष्म वस्तु तथा केवल अवयव निरपेक्ष मात्र द्रव्य रूप स्थूल वस्तु ही ज्ञान में नहीं झलकती है। - अतः प्रत्येक वस्तु मुख्य-गौण विवक्षा से कथंचित् एकत्वरूप, कथंचित् अनेकरूप, कथंचित् उभयरूप, कथंचित् अनुभय आदि सप्तभंगीरूप सिद्ध हैं। सार का सार-कथंचित् सभी वस्तुओं में भेद है क्योंकि उनका लक्षण, उनकी संज्ञा, उनकी संख्या अलग-अलग हैं। कथंचित् सभी वस्तुओं में अभेद है क्योंकि सभी अस्तिरूप हैं--वस्तुरूप हैं इत्यादि से वस्तु में भेद-अभेद की व्यवस्था बन जाती है क्योंकि प्रत्येक वस्तु के एक-अनेक, भेद-अभेद धर्म परस्पर सापेक्ष हैं निरपेक्ष नहीं हैं ऐसा समझना। इस प्रकार श्रीविद्यानन्दि आचार्य विरचित अष्ट सहस्री ग्रन्थ में आर्यिकाज्ञानमतीकृत कारिकापद्यानुवाद, अर्थ, भावार्थ, विशेषार्थ और सारांश से सहित इस ‘स्याद्वादचिंतामणि' हिन्दी भाषा टीका में यह दूसरा परिच्छेद पूर्ण हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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