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________________ ६० ] अष्टसहस्री [ द्वि० ५० कारिका ३५ राभ्यां युज्यन्ते, न वस्तुस्वभावो, यतस्तयोः 'सद्विषयत्वमिति चेन्न, शब्देभ्यो वस्तुनि प्रवृत्तिविरोधात् । 'व्यावृत्तितद्वतोरेकत्वाध्यारोपात्तद्वति प्रवृत्तिरिति चेन्न, अध्यारोपस्य विकल्पत्वेनार्थाविषयत्वात् 'स्वाविषयेण व्यावृत्तेरेकत्वारोपणायोगात् । सामान्येनार्थोध्यारोपविकल्पविषय एवेति चेत्तदपि यद्यन्यव्यावृत्तिरूपं तदा व्यावृत्त्यैव व्यावृत्तेरेकत्वारोपात्कुतोर्थे प्रवृत्तिः2 ? तामिच्छता13 1 तदेककशः परस्परव्यावृत्तयोपि परिणामविशेषा' एषितव्याः । करता है अतः स्वलक्षणरूप अर्थ को विषय न करने से व्यावृत्ति में एकत्व का अध्यारोप नहीं हो सकता है। बौद्ध-सामान्य से अर्थ अध्यारोप के विकल्प का विषय ही है अर्थात् यहाँ व्यावृत्ति ही सामान्य है उस सामान्य से अध्यारोपित विकल्प का विषय ही स्वलक्षण अर्थ है। जैन-यदि ऐसा कहो तो यह प्रश्न होता है कि यदि वह भी अन्य व्यावृत्तिरूप है तब तो व्यावृत्ति से ही व्यावृत्ति में एकत्व का आरोप करने से अर्थ में प्रवृत्ति कैसे होगी ? अर्थात् यदि वह सामान्यरूप व्यावृत्ति भी "असामान्य से व्यावृत्त सामान्यरूप है"। तब तो उस सामान्यरूप व्यावृत्ति से अध्यारोप विकल्प के विषय विशेष की व्यावृत्ति के होने पर ही भिन्न व्यावृत्ति में प्रवृत्ति होगी, किंतु स्वलक्षणभूत अर्थ में प्रवृत्ति नहीं हो सकेगी। यदि आप उस प्रवृत्ति को स्वीकार करना चाहते हैं तब तो "उस एक-एकरूप से परस्पर में व्यावृत्त-भिन्न-भिन्नरूप भी पदार्थ-पदार्थ के प्रति वस्तु धर्मरूप परिणाम विशेष होते हैं।" ऐसा स्वीकार करना चाहिये। 1 सन् विषयो ययोः (विवक्षेतरयोः), तयोर्भावः । 2 व्यावृत्तिविषयेभ्यः । 3 व्यावृत्तिरेव सामान्यं तेन सामान्यरूपेण । 4 घटमानयेत्युक्त घटमानयतीति प्रवृत्तेविरोधो भवेत् । 5 तद्वान् गौः। 6 गवि । 7 स्वलक्षणरूपेणार्थेन । 8 व्यावृत्तिरेव सामान्यं तेन सामान्यरूपेण । 9 स्वलक्षणः । 10 अध्यारोपो विकल्पस्तस्य विषय: सामान्यलक्षणोर्थः । 11 असामान्यायावृत्तं सामान्यरूपम् । 12 ततश्च सामान्यरूपव्यावृत्तेरध्यारोपविकल्पविषयविशेषव्यावृत्तावेव (व्यावृत्त्यन्तरे) प्रवृत्तिर्न पुनः स्वलक्षणे इति भावः । 13 बौद्धेन । 'तामिच्छतां' इति पाठान्तरम्। 14 ततः । 15 पदार्थ पदार्थ प्रति वस्तुधर्माः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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