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________________ बोद्धाभिमत पृथक्त्व एकांत का खण्डन ] तृतीय भाग तदसत्त्वव्यावृत्तेरपि वस्तुस्वभावत्वादन्यथा खरविषाणादावपि तदनुषङ्गात् । तथा हि । ज्ञानज्ञेययोरसद्व्यावृत्तिर्वास्तवी सद्विशेषत्वात् । यस्य तु न सा वास्तवी स न सद्विशेषो यथा वन्ध्यासुतः । सद्विशेषौ च ज्ञानज्ञेये । इति केवलव्यतिरेकी हेतुः । तथा यत्रासव्यावृत्तिर्वास्तवी तत्र सत्सामान्यं वस्तु, सत्सामान्यरहितेषु वन्ध्यासुतादिष्वसद्व्यावृत्तेरवास्तवत्वात्, इति वास्तवसत्सामान्यात्मना ज्ञानस्य ज्ञेयाभेदे सद्विशेषात्मनापि भेद: स्यात् । तथा च ज्ञानमसत् प्राप्तम् । तदनिच्छतां विषयिणो विषयात्कथंचित्स्वभावभेदेपि सदाद्यात्मना तादात्म्य बोधाकारस्येव विषयाकाराद्, विशेषाभावात्। अन्यथा ज्ञानमवस्त्वेव खपुष्पवत् । तदभावे बहिरन्तर्वा ज्ञेयमेव न स्यात्, तदपेक्षत्वात् तस्य । ततः श्रेयानयमुपालम्भः पृथक्त्वैकान्तवाचां ताथागतानां वैशेषिकवत् । जैन-ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि सत्सामान्य के अभाव में अथवा उसे संवृतिरूप मानने पर सद्विशेषक्षणिकरूप घटपटादिकों के अभाव का प्रसंग आ जायेगा। अथवा घट, पटादि विशेष पदार्थ भी संवृतिरूप ही हो जावेंगे। उन सद्विशेषों में असत्त्व की व्यावृत्ति के होने पर भी वे वस्तु स्वभाव ही हैं अन्यथा अखरविषाण से व्यावृत्त खरविषाणादि में भी सत्त्व का प्रसंग हो जायेगा। तथाहि—“अज्ञान से व्यावृत्त-ज्ञान और अज्ञेय से व्यावृत्त ज्ञेय में असत् की व्यावृत्ति वास्तविक है क्योंकि सद्विशेष है। जिनमें वह वास्तविक नहीं है वे सद्विशेष भी नहीं हैं जैसे वंध्या का पुत्र, और ज्ञान ज्ञेय, सद्विशेष हैं।" इस प्रकार से यह केवल व्यतिरेकी हेतु है। __उसी प्रकार से जिस ज्ञान और ज्ञेय में असत् की व्यावृत्ति वास्तविक है उसी में सत्सामान्य वास्तविक है । सत्सामान्य से रहित वंध्या सुतादि में असत् व्यावृत्ति अवास्तविक है। इस प्रकार से वास्तविक सत्सामान्यरूप से ज्ञेय से ज्ञान में भेद के स्वीकार करने पर उसमें सविशेषरूप से भी भेद हो जायेगा और उस प्रकार से ज्ञान असत् हो जायेगा। ज्ञान को असत्रूप स्वीकार न करते हुये "विषयी-ज्ञान में विषय से कथंचित्-"ग्राह्यग्राहकरूप से" स्वभाव भेद होने पर भी सत् आदिरूप से तादात्म्य है, जैसे कि बोधाकार में विषयाकार से भेद होने पर भी सत् आदिरूप से तादात्म्य है क्योंकि दोनों में अंतर का अभाव है। अन्यथा--यदि सत् आदिरूप से भी तादात्म्य नहीं मानों तब तो ज्ञान आकाशकमल के समान अवस्तु ही हो जायेगा। पुनः उस ज्ञान के अभाव में बहिरंग अथवा अंतरंग ज्ञेयरूप पदार्थ ही सिद्ध नहीं हो सकेंगे क्योंकि वे ज्ञेय ज्ञान की अपेक्षा रखते हैं।" अतएव वैशेषिक के समान पृथक्त्वैकांतवादी बौद्धों के प्रति "ज्ञान और ज्ञेय दोनों ही असत् हो जायेंगे" यह उलाहना श्रेयस्कर ही है। 1 सत्सामान्यखरविषाणयोरविशेषोऽवस्तुत्वात् । ब्या० प्र०। 2 वस्तुभूता। दि० प्र० । 3 ज्ञानज्ञेययोरसद्वचावत्तिलक्षणं । दि० प्र०। 4 वस्तुभूत । दि० प्र०। 5 तथा सति किमायातं ज्ञानमासज्जातम् । दि० प्र०। 6 एषितव्यम् । ब्या० प्र० । 7 दृष्टान्ते तादात्म्य मन्यत्रातादात्म्यं भवतीति यो विशेषः । ब्या० प्र.। 8 असदेव । ब्या०प्र०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001550
Book TitleAshtsahastri Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages688
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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