________________
अष्टसहस्री
[ द्वि० प० कारिका २६
-
सांप्रतं निरन्वयक्षणिकलक्षणपृथक्त्वपक्षे दूषणमाविर्भावयितुमनसः' सूरयः प्राहुः ।
संतानः समुदायश्च साधर्म्य' च निरंकुशः।
प्रेत्यभावश्च तत्सर्वं न स्यादेकत्वनिह्नवे ॥२६॥ जीवादिद्रव्यैकत्वस्य निह्नवे संतानो' न स्याद्भिन्नसंतानाभिमतक्षणवत्" । यथैक'. स्कन्धावयवानामेकत्वपरिणामापलापे समुदायो न स्यान्नानास्कन्धावयववत् तथा सधर्मत्वाभिमतानां सदृशपरिणामैकत्वापह्नवे साधर्म्यं न स्याद्विसदृशार्थवत् । मृत्त्वा पुनर्भवनं प्रेत्यभावः । सोपि न स्यादुभयभवानुभाव्येकात्माऽपाकरणे नानात्मवत् । चशब्दाद्दत्तग्र
उत्थानिका-संप्रति निरन्वय क्षणिक लक्षण पृथक्त्व पक्ष में दूषण को प्रकट करते हुये श्री स्वामी समंतभद्राचार्यवर्य कहते हैं
यदि एकत्व नहीं मानो, संतानरूप अन्वय कैसा। नहिं होवे समुदाय, सदृशता, नहिं परलोक गमन होगा। बाल वृद्ध पर्याय अनेकों, नहीं घटेंगी जो निर्बाध ।
क्षणिकैकांत पक्ष में क्षण-क्षण, में होता है सब कुछ नाश ।।२६।। कारिकार्थ-एकत्व का सर्वथा निलव करने पर निरंकुश-सकल बाधक रहित अस्खलितरूप से प्रमाण प्रसिद्ध संतान, समुदाय, साधर्म्य, परलोक तथा दिये हुये को लेना आदि ये सब व्यवहार सिद्ध नहीं हो सकते हैं ॥२६॥
जीवादि द्रव्य के एकत्व-अन्वयरूप अवस्था विशेष का अपलाप करने पर "संतान" सिद्ध नहीं हो सकेगा जैसे भिन्न संतान के स्वीकार किये गये क्षण सिद्ध नहीं हैं । जिस प्रकार से एक स्कंध के अवयवों में एकत्व-अन्वय परिणाम का अपलाप करने पर अनेक स्कंधों के अवयवों के समान समुदाय भी सिद्ध नहीं हो सकेगा। उसी प्रकार से सधर्मत्व-सादृश्यरूप से स्वीकृत पदार्थ में सदश परिणामरूप एकत्व का निह्नव करने पर विसदृश पदार्थ के समान साधर्म्य भी सिद्ध नहीं होगा। मरकर पुनर्जन्म लेना प्रेत्यभाव है। उभयभव में अन्वयरूप से रहने वाली एक आत्मा का निराकरण करने पर वह प्रेत्यभाव भी नहीं बन सकेगा जैसे कि नाना जीव परस्पर में परस्वरूप से परिणमन नहीं कर सकते हैं।
1 प्रकटीकर्तुम् । दि० प्र० । 2 द्रव्यान्वयः । दि० प्र०। 3 घटाद्ये कस्कन्धावयवपरमाणुलक्षणः । दि० प्र० । 4 इदमनेन सदृशमिति सादृश्यम् । दि० प्र०। 5 एकस्यात्मनो मृत्वा पुनर्भवनं प्रेत्य भावः । दि० प्र०। 6 दत्तग्रहादिसर्वं ग्राह्य चकारात् । पूर्वोक्तसन्तानादिकम् । दि० प्र० । 7 अभावे । दि० प्र० । 8 जीवादिद्रव्यकत्वस्यापलापे । दि० प्र०। 9 एक। ब्या० प्र० । सामान्य निर्देशान्नपंसकलिगता। दि० प्र०। 10 एकसन्तानो न स्यात्तथा । दि० प्र० । 11 घटादिलक्षण । परमाणू नाम् । दि० प्र० । 12 शब्दादीनाम् । द्रव्याणाम् । दि० प्र० । 13 सादृश्यम् । दि० प्र०। 14 विसदृशपदार्थवत् । दि० प्र०। 15 इहलोकपरलोक । ईप द्विः । दि० प्र० ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org