SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४ आभार 8 MASAR स्व० श्री नेमीचन्द जी पाटनी अष्टसहस्री जैन न्याय में सर्वोपरि ग्रन्थ माना जाता है। इसे विद्वानों ने कष्टसहस्री नाम भी दिया है। प्रस्तुत ग्रन्थ की हिन्दी टीका सिद्धान्तवाचस्पति गणिनी आर्यिकारत्न पूज्य श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा की गई है। दान और पूजा ये श्रावकों की अनादि निधन प्राचीन परम्परा है। दान को आचार्यों ने आहारदान, ज्ञानदान (शास्त्रदान), औषधिदान और अभयदान इन चार भागों में विभाजित किया है । इनमें ज्ञानदान को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है क्योंकि यह अज्ञान का नाश करके केवलज्ञान और मोक्ष सुख को उत्पन्न कराने में निमित्त कारण है। दान की परम्परा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिये एवं संसार से अज्ञान का नाश करने के लिये श्रावक शिरोमणि धर्मनिष्ठ स्व० श्री नेमीचंद जी पाटनी सुजानगढ़ निवासी की स्मृति में उनकी धर्मपत्नी महिलारत्न श्रीमती सोनी देवी तथा सुपुत्र श्री हीरालाल राजकुमार पाटनी द्वारा वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला के अष्टसहस्री भाग-२ के ५०० प्रतियों के प्रकाशन में जो आर्थिक सहयोग प्राप्त हुआ है । जिससे हमें इस ग्रन्थ को शीघ्र प्रकाशित करने में मदद मिली है, इसके लिये हम आपके अत्यन्त आभारी हैं तथा यही कामना है कि भविष्य में भी आप इसी प्रकार अपना उदार सहयोग प्रदान करके पुण्योपार्जन करते रहेंगे। इसी प्रकार प्रस्तुत ग्रन्थ के सुन्दर प्रकाशन हेतु श्री हरीश जैन फर्म-सुमन प्रिन्टर्स मेरठ को भी धन्यवाद देना आवश्यक है जिन्होंने ग्रन्थ को सुन्दरतम प्रकाशित करने में हमें सहयोग प्रदान किया है। हस्तिनापुर -ब्र० रवीन्द्र कुमार जैन ३०-२-८६ सम्पादक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy