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पूज्य आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी कृत हिन्दी टीका
का एक पृष्ठ नमूनार्थ मापी नं.६. अ. पृ. २७५
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। जैन - ऐसा नहीं करना , अनुमानादि से भी मानी गई वस्त में (पदार्थ का ऐसा ही स्वभाव है ' ऐसा उत्तर देता बि०६८ नहीं है क्योकि प्रत्यक्ष ले समात अनुमानादि को 4 हमले प्रमाणभूत माल है । सप्तलिये प्रमाण सिर परमागम से भव्य एवं अमव्यरूप प्रकृत में भाये ये जीव रे ननाव प्रतीत का अनुसाण माते हये तर्क है विषय नहीं है कि जिससे उनमें प्रश्न उठाया जा सके अर्थात स्वभाव में प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। अन्यथा तर्क के विषय भूत पदार्थों में 4 आगम से विषयरूप से प्रश्न उठाने का प्रसंग आ. जायेगा और उसी प्रकार से प्रत्यक्ष के विषय - भूत पदार्थों में भी प्रश्न उठते ही रहेंगे अर्धात मह आणि उष्ण क्या है ? तो यह जल ठंढा क्यों ५ १.. इत्यादि । पुनः उस्त प्रथा से तो प्रत्यक्ष और आगम स्वतंत्र दिवा नहीं हो सकेंग तर्क के समान |
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