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________________ Jain Education International दिल्ली ग्रंथ भंडार से हस्तलिखित प्राचीन अष्टसहस्त्री के एक पृष्ठ का नमूना (जिससे इस ग्रंथ में टिप्पण व पाठांतर संग्रहीत किये गये हैं) पसरवादपर्यायापेक्षया - १६व्यरूपतया- ९मात्मशदीयमुनमत्रसंवयतेनविशेषात्मनएकात्म नवनियोजनकत्तच्या चित्रानवादी-सौगतः: प्रतिनियतानकमव: चानंदम्ब नावात जय- अपरिविधि सम्पम्प - १०८ - - - - याद६५ विसति For Private & Personal Use Only शविर धर्म वेष्पन्निन्न | यतेवित्रज्ञातवकदिदसंकीर्मविशषिकात्मनःसुवादिश्चतत्यस्पर।। वर्मसंस्थानाद्यात्मनःस्कंधस्पचपेरणतिस्पान्मतसुखादिवितन्यममें वाहविशेषात्मकमेवनश्तरेकात्मकंमुख चेतत्यांदालादनाका गमेयबोधताकारमाविज्ञातस्मात्पवासिधार्माध्यासस्यान्यव साधनचांदपछाविश्वस्पेकवपसंगादितितदसंछित्रज्ञानस्याणकारी लकवातावपसंमतपताकारसांवदनस्पतीलााकारसांवदतादत्य बान्तशिरुध्धानाध्यासात्यदिपुनस्वाक्यविश्ववतत्वात्पीताद्याका रसंवेदनामकात्मकमुरक्रियते तदासुरवादिचतन्पनकापराधक तस्तस्याप्पाकविश्वनत्वादेकात्मकत्वापपपीताद्याकारणामिर वसुखाद्याकाराणांवितन्यांतरनेसशविवेवनवस्पसझावातही पलानाम्पसुरवः स्वीकारागामजपन्न मतानप्रतिप्रापपिटय क्रमशक्त्वात् । सोगतः, सुरवचैतन्यादिज्ञानस्प प्रपत्वमिव ॥असिन्नरूपत्वात सुरवादिदैतन्पस्स: - - www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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