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उन्होंने अतीव संतोष व्यक्त करते हुए कई बार ये शब्द कहे कि-"अनुवाद बहुत ही सरल, स्पष्ट एवं प्रभावक हुआ है । साथ ही यह भी कहा कि माताजी स्वयं ही एक बार सूक्ष्मता से दृष्टि डालकर परिमार्जित कर लें । अतः माताजी ने अन्य कार्यों को गौण करके अपना अमूल्य समय एवं सम्पूर्ण शक्ति इसी में लगाकर कृति को पूर्ण रूप से विशुद्ध बना दिया।
हस्तलिखित प्रति की प्राप्ति
अनुवाद के समय तो केवल छपी हुई प्रति ही सामने थी जो कि निर्णयसागर प्रेस बम्बई की छपी थी। वि० सं० २०२६ के अजमेर चातुर्मास के पश्चात् जब माताजी ब्यावर पधारी तब पं० हीरालाल जी सिद्धांत शास्त्री ने अष्टसहस्री के अनुवाद को देखने की अभिलाषा व्यक्त की। कुछ पृष्ठों का अवलोकन करके परम संतोष व्यक्त करते हुए इस महान कार्य की भूरि-२ प्रशंसा की। बाद में पं० हीरालाल जी के सौजन्य से ऐलक पन्नालाल दिगम्बर जैन सरस्वती भवन ब्यावर के विशाल ग्रंथ भंडार से जिसमें कि वे सेवारत थे ४०० वर्ष प्राचीन एक हस्तलिखित अष्टसहस्री की प्रति प्राप्त हई। उसमें छपी हई प्रति से कुछ अधिक टिप्पणियाँ एवं पाठांतर दे रखे थे जिनसे अर्थ का विशेष स्पष्टीकरण होता है यदि यह प्रति अनुवाद से पूर्व सामने होती तो अनुवाद में जितना श्रम लगा उसमें सहायता मिलती। उस हस्तलिखित प्रति की विशेष टिप्पणियों एवं पाठांतरों को माताजी ने इस ग्रन्थ में जोड़ लिया है। प्रकाशन का निश्चय
जब प्रकाशन की तैयारी हो चुकि तो प्रेस की समस्या सामने आई। ब्यावर में तो ऐसी कोई प्रेस उपलब्ध नहीं हुई जिसमें संस्कृत का कार्य हो सके । तब पं० अभयकुमार जी अजमेर (तत्कालीन प्रबंधक-जैन गजट साप्ताहिक) के सहयोग से केशव आर्ट प्रिंटर्स, हाथी भाटा अजमेर के यहाँ छपवाना प्रारम्भ हुआ । संस्कृत प्रूफ रीडिंग एवं पेज कटिंग के लिए कई लोगों से बात की किन्तु कोई उचित व्यक्ति न मिल पाने से अंततोगत्वा प्रूफ रीडिंग का कार्य हमें ही करना पड़ा। पेज कटिंग व फायनल प्रफ रीडिंग का कार्य भार माताजी पर ही छोड़ा गया क्योंकि और कोई करने में सक्षम भी नहीं था। प्रकाशन व्यवस्था अजमेर से दिल्ली
बड़ी कठिनाई से यह व्यवस्था बन पाई थी कि संघ का बिहार दिल्ली के लिए हो गया । पुनः यह समस्या उपस्थित हो गई कि इतनी दूर रहकर यह काम चलाना अशक्य है अतः दिल्ली में संस्कृत का काम करने वाली अनुभवी प्रेस की खोज की गई। सम्राट प्रेस पहाड़ी धीरज इसके लिये सक्षम रही। अजमेर से छपे हुए फर्मे व अवशेष कागज आने तक छह माह बीत गए एवं प्रेस निर्णय के बाद भी टाइप आदि की व्यवस्था में तीन माह और निकल गये । पुनः वि० सं० २०२६ में भाद्रपद माह के शुभ दिन से छपाई का कार्य मंद गति से चलने लगा।
पूज्य माताजी का अनुवाद सौष्ठव में अपार श्रम
पूज्य माताजी ने अनुवाद करने में जितना श्रम किया है उसके विषय में कलम से लिखना कठिन है। मूल एवं हिन्दी प्रकरणों के शीर्षक बनाना, प्रत्येक पृष्ठ के ऊपर विषय के अनुसार शीर्षक देना, मूल पंक्तियों के अर्थ के साथ टिप्पणियों के अर्थ को खोलना, अर्थ के अनंतर स्थान-स्थान पर भावार्थ एवं विशेषार्थ के द्वारा अति स्पष्ट रूप में प्रकरण के रहस्य को प्रस्फुट करना सामान्य श्रम नहीं था।
इन सबके अतिरिक्त समस्त प्रतिवादियों की विचारधारा को मस्तिष्क में रखकर सार रूप में विषय
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