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________________ शब्द के नित्यत्व का खंडन 1 प्रथम परिच्छेद [ १५७ समानं हि करणं वर्णानां श्रुतौ श्रोत्रं, नीलपीतादीनां रूपविशेषाणां दृष्टौ चक्षुर्वत् । ततस्तेषामेकव्यञ्जकव्यापारेपि समानदेशकालानां कथमभिव्यक्तिनियमो' नीलादिवत् ? क्वचिदेकत्रकदापि च सर्ववर्णाभिव्यक्ती सर्वत्र सर्वदाभिव्यक्तिस्तेषां, स्वरूपेणाभिव्यक्तत्वात्, तत्स्वरूपस्य च व्यापिनित्यत्वात् । खण्डशस्तदभिव्यक्तौ वर्णानां व्यक्तेतराकारभेदाभेदप्रसक्तेः नहीं बन सकता है। पुनः सर्वत्र सर्वदा सभी ही शब्दों का संकुल-संकीर्ण (मिश्रित) रूप से हो सुनना हो जावेगा।" अर्थात् शब्द श्रोत्रेन्द्रिय के द्वारा ही ग्रहण किये जाते हैं। इसीलिये सभी शब्दों का श्रोत्ररूपकारण समान ही है एवं शब्द सर्वथा नित्य और सर्वगत हैं, पुनः उनकी अभिव्यक्ति का नियम न हो सकने से सभी काल में सभी देश में सभी शब्द एक साथ ही मिश्रित-कलकलरूप से सबको सुनाई देने लगेंगे। पुन: शब्दरूप ही सारा जगत् बन जावेगा और कुछ भी व्यापार नहीं दीख सकेगा। बस शब्द ब्रह्मरूप ही मान्यता सिद्ध हो जावेगी क्योंकि वर्णों के सुनने में श्रोत्रेन्द्रिय यह सभी के लिये समानरूप से ही करण है । अर्थात् सभी जन कर्ण से ही शब्दों को सुनते हैं, ऐसा नहीं है कि कोई चक्ष, घ्राण आदि से शब्दों को सुन लेवें। अतएव सभी के लिये शब्द को सुनने में श्रोत्रेन्द्रिय समान ही है। जैसे कि नील पीतादिरूप विशेष को देखने में चक्षु इन्द्रिय सभी के लिये समानरूप कारण है। इसीलिये उन शब्दों में एक व्यञ्जकव्यापार के होने पर भी समान देश और काल में होने वाले शब्दों की अभिव्यक्ति का नियम दि के समान ? अर्थात जैसे चित्ररूप को ग्रहण करने में मनुष्य नोलादि वर्गों को एक साथ ही ग्रहण करता है । तथैव शब्द नित्य होने से सर्वकाल में मौजूद हैं और उनका श्रोत्रेन्द्रिय देश सभी को समान ही है, अतएव एक वर्ण की अभिव्यक्ति होने पर सभी वर्गों की अभिव्यक्ति भी एक साथ ही हो जावेगी और कहीं एक जगह एक काल में भी सभी वर्गों की अभिव्यक्ति हो जाने पर सर्वत्र सभी काल में उन वर्णों की अभिव्यक्ति बनी ही रहेगी, क्योंकि वे शब्द स्वरूप से अभिव्यक्त ही हैं और उन शब्दों का स्वरूप तो व्यापी एवं नित्य माना गया है । अर्थात् शब्द तो स्वरूप से ही अभिव्यक्तरूप, व्यापी और नित्य हैं, पुनः सदा ही सुनाई देते रहेंगे और यदि सर्वत्र खण्ड-खण्ड रूप से उन वर्गों की अभिव्यक्ति मानों, तब तो वर्ण में व्यक्त और अव्यक्तरूप आकार भेद से उन वर्गों में भेद का प्रसंग प्राप्त होने से प्रत्येक में अनेकत्व की आपत्ति आती है, अथवा सभी वर्ण एकानेकात्मकरूप हो जावेंगे। अर्थात् उन वर्गों में वर्णपने से एकरूपता और व्यक्त तथा अव्यक्तरूप से अनेकरूपता आ जावेगी। यदि आप कहें कि खण्ड-खण्डरूप से अभिव्यक्ति नहीं होती है किंतु सर्वात्मकरूप से ही होती है, तब तो सभी देशकालवर्ती प्राणियों के प्रति उन वर्णों की अभिव्यक्तता हो जावेगी । पुनः सर्वत्र 1 नैव । (ब्या० प्र०) 2 उक्तप्रकारेणकानेकात्मकत्वप्रसंगः। वर्णत्वेनैकात्मकत्वम् । व्यक्ताव्यक्तरूपेणानेकात्मकावम् । (दि० प्र०) 3 आह मीमा०हे स्याद्वादिन् ! वर्णानामभिव्यक्तिः खण्डरूपेणास्तीति चेत् । स्या० एवञ्च सत्यां येनांशेन वर्णानामभिव्यक्तिस्तेनांशेन वर्णाव्यक्ता इतरांशेनाव्यक्ता एवं वर्णानां भेदः प्रसजति । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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