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________________ जय पराजय व्यवस्था ] प्रथम परिच्छेद [ ५३ प्रसङ्गात् । प्रतिज्ञावचनवदसाधनाङ्गत्वात्तस्यानिग्रहस्थानत्वे वा संगरवचनादेरप्यपजयप्राप्तिविरोधात्पक्षधर्मप्रदर्शनमसाधनाङ्गवचनादपजयप्राप्त्या व्याहतमेव । त्रिलक्षणवचनसमर्थन च', तदन्तरेणापि विलक्षणवचनस्य साधनाङ्गत्वसिद्धौ प्रतिज्ञादिवचनस्य 'साधनाङ्गत्वसिद्धरन्यथा तस्य' प्रतिज्ञा दिवचन वदपजयप्राप्तिनिबन्धनत्वप्रसक्तेः। ततस्तद्वयाहति। परिजिहीर्षता12 गम्यमानस्यापि वचनं नासाधनाङ्गवचनं वादिनो निग्रहाधिकरणमिति प्रतिपत्तव्यम् । नन्वेवमप्रस्तुतस्यापि15 नाटकादिघोषणस्य 16द्वादशलक्षणप्ररूपणस्य वा निग्रहा अख 'सश्च शब्दः' सत्रूप शब्द है इस प्रकार के वचन प्रयोग के बिना भी शब्द में सत्त्व प्रतीति हो जाती है अतः यह प्रयोग निग्रहस्थान को प्राप्त हो जाता है अथवा यदि आप यों कहें कि प्रतिज्ञावचन के समान साधनाङ्ग न होने पर भी वह पक्षधर्म प्रयोग निग्रहस्थानरूप नहीं है तब तो प्रतिज्ञावचन आदि से भी अपजय प्राप्ति का विरोध होने से पक्षधर्म का प्रदर्शन करना और असाधनाङ्गवचन से अपजय प्राप्ति होती है ऐसा कहना यह सब व्याहत-विरुद्ध ही है। त्रिलक्षणवचन समर्थन भी खण्डित हो जाता है क्योंकि समर्थन के बिना भी विलक्षणवचन द्ध है अतः प्रतिज्ञादिवचन भी हेत के अङ सिद्ध हो जाते हैं अन्यथा यदि ऐसा नहीं मानो तो विलक्षणवचन समर्थन भी प्रतिज्ञादिवचन के समर्थन के समान पराजय की प्राप्ति का कारण हो जावेगा । यदि आप बौद्ध समर्थन और पक्षधर्मत्व प्रदर्शन के विरोध को दूर करना चाहते हैं तब तो गम्यमान भी प्रतिज्ञादिवचन जो कि असाधनाङ्गवचन होने से वादी के लिये निग्रहस्थान हैं ऐसा ही स्वीकार नहीं करना चाहिये। बौद्ध-इस प्रकार से अप्रस्तुत भी नाटक आदि घोषण अथवा द्वादशलक्षण-प्ररूपणरूप (पांच इन्द्रियां और पांच उनके विषय, मन एवं धर्मायतन इन 12 आयतन) को भी निग्रहस्थान प्राप्त नहीं हो सकेगा। भावार्थ-दिल्ली प्रति की टिप्पणी में 'द्वादशांग लक्षण' शब्द से द्वादश निदान लिये हैं यथा अविद्या के निमित्त से संस्कार होते हैं, संस्कार से विज्ञान, विज्ञान से नामरूप, नामरूप से षडायतन, 1 संश्च शब्द इति पक्षधर्मस्य। 2 सौगतमतापेक्षया। 3 का। निगमनवचन। (ब्या० प्र०) 4 सौगतस्य । (दि० प्र०) 5 व्याहतमेवेति पूर्वोक्तेनान्वयः। 6 समर्थनम् । (दि० प्र०) 7 साध्यसिद्धय गत्व । (ब्या० प्र०) 8 समर्थनसहितत्वेन । 9त्रिलक्षणवचनसमर्थनस्य । 10 प्रतिज्ञादिवचनसमर्थनवदित्यर्थः। 11 समर्थनपक्षधर्मत्वप्रदर्शनयोाह तिम् । 12 बौद्धेन । 13 प्रतिज्ञादेः। 14 बौद्धः । 15 साध्यत्वेनारब्धस्यापि नाटकालंकाराद्युच्चारणस्य । (दि० प्र०) 16 पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाद्या विषयाः पञ्चमानसम् । धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि वै । 17 (1) अविद्या प्रत्ययाः संस्काराः। (2) संस्कारप्रत्ययं विज्ञानम् । (3) विज्ञानप्रत्ययं नामरूपम् । (4) नामरूपप्रत्ययं षडायतनम् । (5) षडायतनप्रत्ययः स्पर्शः। (6) स्पर्शप्रत्यया वेदना। (7) वेदनाप्रत्यया तृष्णा । (8) तृष्णा प्रत्ययमुपादानम्। (9) उपादानप्रत्ययो भवः । (10) भवप्रत्यया जातिः। (11) जातिप्रत्ययं जरामरणम् । (12) इति वृद्धबौद्धाभ्युपगतद्वादशाङ्गलक्षणप्ररूपणस्य । एतस्य द्वादशाङ्गस्य विवरणं दशमपरिच्छेदेऽज्ञानाच्चेद् ध्रुवो बन्ध इत्येतत्कारिकाव्याख्याने वक्ष्यमाणं दृष्टव्यम् । (दि० प्र०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001549
Book TitleAshtsahastri Part 2
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages494
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size11 MB
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