SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मंगलाचरणम् श्री 'वर्द्धमानमभिवन्ध समन्तभद्र-मुद्भूतबोधमहिमानमनिन्द्यवाचम् । शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्त-मीमांसितं कृतिरलक्रियते मयास्य ॥१॥ मङ्गलाचरण का अर्थ-जा समंत-सर्वप्रकार से भद्र-कल्याणस्वरूप हैं, जिनके केवलज्ञान की महिमा प्रकट हो चुकी हैं - जो विद्यानंदमय हैं, जिनके वचन अनिद्य-अकलंकरूप अनेकांतमय हैं, ऐसे श्री-अंतरंग-अनन्तचतुष्टयादि एवं बहिरंग-समवसरणादि विभूति से सहित अंतिम तीर्थंकर श्री वर्धमान भगवान् को नमस्कार करके महाशास्त्र-तत्वार्थसूत्र के प्रारम्भ में "मोक्षमार्गस्य नेतारम्" इत्यादि मंगलरूप से रचित स्तुति के विषयभूत आप्त भगवान् की मीमांमा स्वरूप जो "देवागमस्तोत्र" है उसे भाष्यरूप से मैं-विद्यानंदि स्वामी अलंकृत करता हूँ। [ श्री लघसमंतभद्रकृत टिप्पणी का भावार्थ-इसमें मंगलाचरण से सर्वप्रथम श्री वर्धकान भगवान को एवं संपूर्ण अर्हत्समुदाय को नमस्कार किया है। पुनः इसी श्लोक से श्री समंतभद्रस्वामी को एवं आप्तीमीमांसा स्तोत्र को नमस्कार किया है।। उत्थानिका-इसी भरतक्षेत्र में पहले अपनी निर्दोष विद्या एवं निर्दोष संयमरूपी संपत्ति से गणधरदेव, प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली, दशपूर्वधारी आदि सूत्र की रचना करने वाले महर्षियों की महिमा को आत्मसात् (स्वयं प्रत्यक्ष) करते हुए भगवान् श्री उमास्वामी आचार्यवर्य ने तत्वार्थसूत्र नामक महाशास्त्र की रचना की है । स्याद्वादविद्या के अग्रणी श्री समंतभद्रस्वामी ने उस तत्वार्थ सूत्र महाशास्त्र की 'गंधहस्ति महाभाष्य' रूप टीका रचते हुए मंगलाचरण में 'मोक्षमार्गस्य नेतारम्" इत्यादि की टीका में मंगल स्वरूप स्तुति के गोचर परम आप्त भगवान् के गुणों की मीमांसा (परीक्षा) को करते 1 ॐ नमः । इह हि खलु पुरा स्वकीयनिरवद्यविद्यासंयमसम्पदा गणधरप्रत्येकबुद्धश्रुतकेवलिदशपूर्वाणां सूत्रकृन्महर्षीणां महिमानमात्मसात्कुर्वद्भिर्भगवद्भिरुमास्वामिपादराचार्यवरासूत्रितस्य तत्त्वार्थाधिगमस्य मोक्षशास्त्रस्य गन्धहस्त्याख्यं महाभाष्यमुपनिबघ्नन्तः स्याद्वादविद्याग्रगुरवः श्रीस्वामिस मन्तभद्राचार्यास्तत्र मङ्गलपुरस्सरस्तवविषयपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy