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श्रीमद्विद्यानं दस्वामिविरचिता
अष्टसहस्त्री
स्याद्वादचिंतामणि-हिन्दी टीका सहित (टीकाकी-आर्यिका ज्ञानमती)
प्रथम परिच्छेद मंगलस्तवः (टीकाकर्तीकृतः)
अनुष्टुप् छन्द सिद्धान् नत्वाहतश्चाप्तान्, आदिब्रह्मा स वंद्यते । युगादौ सृष्टिकर्ता यः, ज्ञानज्योतिः स मे दिश ॥१॥
मंदाक्रांता छन्द तीर्थेशं श्रीत्रिभुवनपतिं वीरनाथं प्रणम्य, श्रीतत्त्वार्थ जिनवरवचःपूतपीयूषगर्भम् । चित्ते धृत्वा यतिपतिजगत्पत्युमास्वामिसूरिः, मूर्ना नित्यं भुवनमहितः बंद्यते सूत्रकर्ता ॥२॥
सिद्धों को और आप्तस्वरूप अर्हतों को नमस्कार करके उन आदिब्रह्मा की मेरे द्वारा वंदना की जाती है कि जो युग की आदि में सृष्टि कर्मभूमिरूपी सृष्टि के कर्ता हुये हैं। बे आदिनाथ भगवान् मुझे ज्ञानज्योति प्रदान करें।
धर्म तीर्थ के ईश्वर-तीर्थेश्वर श्री-अंतरंग लक्ष्मी अनंतचतुष्टय आदि और बहिरंग लक्ष्मी समवसरणविभूति, उसके स्वामी तथा तीनलोक के नाथ ऐसे महावीर स्वामी को नमस्कार करके जिनेंद्रदेव के पवित्र वचनरूपी अमृत से गभित श्री तत्त्वार्थसूत्र नामक महाशास्त्र को अपने हृदय में धारण करके यतीश्वरों के अधिपति तथा जगत् के स्वामी श्री उमास्वामी आचार्य जो कि जगत् में पूज्य हैं, तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ के कर्ता हैं, शिर झुकाकर नित्य ही मेरे द्वारा उनकी वंदना की जाती है।
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