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________________ अष्टसहस्री ग्रंथ का मूल स्रोत ( श्रीमदुमास्वामिविरचित-तत्त्वार्थसूत्रमहाशास्त्र का मंगलाचरण ) मोक्षमार्गस्य नेतारं, भेत्तारं कर्मभूभृताम् । ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां, वंदे तद्गुणलब्धये ॥१॥ ॥ ॥ ॥ ( श्रीमत्समंतभद्रस्वामि विरचित देवागमस्तोत्र का मंगलाचरण ) देवागम-नभोयान-चामरादि-विभूतयः । मायाविष्वपि दृश्यन्ते, नातस्त्वमसि नो महान् ॥१॥ ( श्रीमद्भट्टाकलंकदेव विरचित अष्टशती भाष्य का मंगलाचरण ) उद्दीपीकृतधर्मतीर्थमचलज्योतिर्वलत्केवलालोकालोकितलोकलोकमखिलैरिन्द्रादिभिर्वदितम् ॥ वंदित्वा परमार्हतां समुदयं गा सप्तभंगीविधि । स्याद्वादामृतभिणी प्रतिहतकांतान्धकारोदयाम् ॥१॥ (श्रीमविद्यानंद आचार्य विरचित अष्टसहस्री का मंगलाचरण) श्रीवर्द्धमानमभिवंद्य समंतभद्र-मुद्भूतबोधमहिमानमनिन्द्यवाचम् । शास्त्रावताररचितस्तुतिगोचराप्त-मीमांसितं कृतिरलंक्रियते मयास्य ॥१॥ ( स्याद्वादचिंतामणि नामा हिंदी टीकाकी आयिका ज्ञानमती कृत मंगलाचरण ) सिद्धान्मत्वाहतश्चाप्तान्, आदिब्रह्मा स बंद्यते। युगादौ सृष्टिकर्ता यः, ज्ञानज्योतिः स मे विश ॥१॥ 9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org .
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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