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इन वाक्यों से यह बात स्पष्ट है कि 'मोक्ष मार्ग के नेता, कर्म पर्वत के भेत्ता और विश्वतत्त्व के ज्ञाता' इन तीन विशेषणों से ही अहंत को सच्चा आप्त सिद्ध किया जा रहा है, अथवा अहंत में ये तीन विशेषण घटित होते हैं इसलिये ही वे सच्चे आप्त हैं। यह सिद्ध किया गया है।
आगे और देखिये-अन्तिम ११४ वीं कारिका की टीका में श्री अष्टसहस्रीकार क्या कहते हैं
"शास्त्रारम्भेभिष्टुतस्याप्तस्य मोक्षमार्गप्रणेतृतया कर्मभूभृद्भतृतया विश्वतत्त्वानां ज्ञातृतया च भगवदहत्सर्वज्ञस्यवान्ययोगव्यवच्छेदेन व्यवस्थापनपरा परीक्षेयं विहिता।"
शास्त्र के आरम्भ में स्तुति को प्राप्त जो आप्त हैं, वे 'मोक्षमार्ग के प्रणेता, कर्म पर्वत के भेत्ता और विश्वतत्त्व के ज्ञाता' इन तीन विशेषणों से युक्त भगवान् अहंत सर्वज्ञ ही हैं, अन्य कोई नहीं हो सकते हैं। इस प्रकार यन्य योग का व्यवच्छेद करके भगवान् अहंत में ही इन विशेषणों की व्यवस्था को करने में तत्पर यह परीक्षा की गई है। यह है सारे अष्टसहस्री ग्रन्थ का अंतिम उपसंहार । यह मंगलाचरण श्री उमास्वामी आचार्यकत ही है, इस बात को सिद्ध करने के लिये इससे बढ़कर सबल प्रमाण और क्या हो सकता है ? पूज्य श्री ज्ञानमती माता जी आश्चर्यपूर्वक कहा करती हैं, कि यह मंगलाचरण श्री उमास्वामी कृत है या नहीं ? विद्वानों में ऐसी शंका कहाँ से उत्पन्न हो गई ?
श्लोकवातिकालंकार ग्रन्थ में भी श्री विद्यानंद महोदय ने स्थल-स्थल पर इस बात को स्पष्ट किया है। देखिये!
'प्रबुद्धाशेषतत्त्वार्थसाक्षात्प्रक्षीणकल्मषे । सिद्ध मुनीन्द्रसंस्तुत्ये मोक्षमार्गस्य नेतरि ॥१॥ सत्यां तत्प्रतिपित्सायामुपयोगात्मकात्मनः । श्रेयसा योक्ष्यमाणस्य प्रवृत्तं सूत्रमादिदम् ॥२॥
कल्याणमार्ग के अभिलाषी अनेक शिष्यों की मोक्षमार्ग जानने की इच्छा होने पर ही 'मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं..........।' इस अच्छी तरह सिद्ध किये गये मगलाचरण की भित्ति पर ही श्री उमास्वामी महाराज ने पहला सत्र लिखा है। जिन्होंने केवलज्ञान के द्वारा सम्पूर्ण पदार्थ जान लिये हैं, ज्ञानावरण आदि घाति कर्म नष्ट कर दिये हैं तथा मोक्षमार्ग को प्राप्त करने और कराने वाले मुनि पुंगवों द्वारा स्तुति करने योग्य हैं ऐसे जिनेन्द्रदेव के सिद्ध होने पर ही तथा ज्ञानदर्शनोपयोग स्वरूप और मोक्ष से युक्त होने वाले शिष्य की मोक्षमार्ग को जानने की तीव्र अभिलाषा होने पर यह पहला सत्र 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग:' उमास्वामी आचार्य ने प्रचलित किया है।
"सिद्ध मोक्षमार्गस्य नेतरि प्रबंधेन वृत्तं सूत्रमादिमं शास्त्रस्येति"। "ततो नि: शेषतत्त्वार्थवेदी प्रक्षीणकल्मषः । श्रेयोमार्गस्य नेतास्ति स संस्तुत्यस्तथिभि." ॥४६॥
इन सभी प्रमाणों से सर्वथा यह बात सिद्ध हो जाती है कि मंगलाचरण श्री सूत्रकार उमास्वामी आचार्यकृत ही है।
१. तत्त्वार्थ श्लोकवातिकालंकार प्रथम खंड, पृ०४०। २. तत्त्वार्थ श्लोकवातिकालंकार प्र० ख०प०५८ । ३. तत्त्वार्थ श्लोक पृ० १४५ ।
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