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श्री उमास्वामी आचार्य ने 'गागर ने सागर' को भरने वाली कहावत को पूर्णतया चरितार्थ कर दिया है। उनके इस तत्त्वार्थ सूत्र ग्रन्थ के ऊपर अनेकों बड़े-बड़े ग्रन्थ तैयार हो गये हैं। जब एक मंगलाचरण के ऊपर आप्त मीमांसा, अष्टशती और अष्टसहस्री जैसे जैन दर्शन के सर्वोपरि ग्रन्थ बन गये । आप्तपरीक्षा ग्रन्थ बन गया । तब उस ग्रन्थ की महत्ता और विशेषता की जितनी भी गौरव गाथायें गाई जावें, थोड़ी ही हैं। यही कारण है कि आज भी भारतवर्ष में दक्षिण-उत्तर आदि प्रान्तों में सर्वत्र नर-नारी इस तत्त्वार्थ सूत्र का पाठ बड़ी भक्ति से करते हैं और एक उपवास करने का फल समझते हैं । बहुत-सी महिलाओं का तो नियम ही रहता है कि 'तत्त्वार्थसूत्र सुने बिना भोजन नहीं करना'। कहा भी है
दशाध्याये परिच्छिन्ने तत्त्वार्थ पठिते सति । फलं स्यादुपवासस्य भाषितं मुनिपुङ्गवः ॥
दश अध्याय से परिपूर्ण इस तत्त्वार्थसूत्र को पढ़ने पर एक उपवास का फल प्राप्त होता है ऐसा श्री मुनियों में श्रेष्ठ मुनियों ने कहा है ।
इस ग्रन्थ का यह मंगलाचरण सच्चे आप्त-देव को सिद्ध करने में सर्वोपरि मान्य अमोघ उपाय है। ऐसा समझना चाहिए।
कु. मालती शास्त्री, धर्मालंकार
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