SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 5
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४ ) पृष्ठ नं० ६ K SH G विधिवाद प्रभाकर नियोगवाद को मानता है जैनाचार्यों ने भावनावादी भाट्ट के मुख से उस नियोगवादी........... विधि को प्रमाण रूप मानने पर उसका खंडन यहां पर भाट्ट जैनमत का आश्रय लेकर विधिवाद का खंडन करता है वेदवाक्य का अर्थ विधि-परमब्रह्म रूप है ऐसी मान्यता में भाट्ट ने प्रश्न उठाये थे कि आपका विधि को शब्द के व्यापार आदि रूप से ४ विकल्प रूप मानने में हानि विधि को सत्-असत् आदि रूप मानने में दोषारोपण विधि को प्रवर्तक स्वभाव या अप्रवर्तक स्वभाव मानने में दोष विधि को फल रहित या सहित मानने में दोषारोपण जैनमत का आश्रय लेकर भाट्ट विधिवादी पर दोषारोपण करता है पूर्व में भावनावादी भाट्ट ने जैसे नियोग का खंडन किया है उसी प्रकार विशेष रूप से अब विधिवाद का भी खण्डन करता है विधि को ग्रहण करने वाले वाक्य अप्रधान रूप से विधि को ग्रहण करते हैं या प्रधान रूप से ? दोनों विकल्पों का निराकरण यहां विधिवादी पुनरपि ब्रह्माद्वैतवाद का समर्थन करते हैं यहां भावनावादी भाट्ट पुनरपि नियोग पक्ष का आश्रय लेकर विधिवादी को दूषण देता है विधि को कहने वाले वाक्य अन्य अर्थ का निषेध करते हैं या नहीं ? ये दो विकल्प उठाकर दोष देते हैं यहां भावनावादी भाट्ट सौगत मत का अवलंबन लेकर विधिवाद को दूषित करते हैं वाक्य का अर्थ विधि ही है वही सर्वत्र प्रधान है ऐसा मानने में दोष हम आपसे प्रश्न करते हैं कि जो आप पर रूप का निषेध करते हैं वह क्रम से करते हैं या युगपत् ? क्रम से है............... सर्वथा विधि भी प्रवृत्ति में हेतु नहीं है ऐसा कहते हुये भाट्ट विधिवाद का परिहार करते हैं इस पर किसी की शंका यह है कि हे स्याद्वादिन् ! ........... विधिवाद के खंडन का सारांश ७० U US Sh11 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy