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भावनावाद यहां तक भावनावादी भाट्ट ने नियोगवादी प्रभाकर के मत का अवलंबन लेकर एवं सौगत ............... अर्थात् वह धात्वर्थ सन्मात्र रूप है या..........-- “शब्द व्यापार रूप शब्दभावना ही नियोग है" ऐसा प्रभाकर के द्वारा मानने पर भाट्ट कहता है कि...............
१०१ संकेत ग्रहण किये हुये शब्द अर्थ का ज्ञान कराते हैं या बिना संकेत ग्रहण किये हुये शब्द....." प्रत्यक्ष के समान शब्द से भी बाह्य पदार्थों का ज्ञान होता है
१०५ शब्द से कार्य का साक्षात्कार होता है या नहीं इस पर विचार
१०७ कारकों के भेद से क्रिया में भेदाभेद का विचार शब्दभावना रूप नियोग अर्थभावना का विशेषण है इस पर विचार वेदवाक्य से यज्ञकार्य में प्रवृत्त हुआ पुरुष स्वर्ग रूप फल को देखे बिना कैसे प्रवृत्त होगा? बौद्ध भेद को काल्पनिक सिद्ध करना चाहता है किंतु भाट्ट भेद को वास्तविक मान रहा है। पुनरपि बौद्ध भेद कल्पना के मानने में अनावस्था दोष देता है, भाट्ट उसका परिहार करता है १२३ अवस्था को छोड़ कर अवस्थावान कोई चीज नहीं है ऐसी बौद्ध की मान्यता पर भाट्ट के द्वारा समाधान करोति क्रिया सामान्य रूप है और यजनपचनादि क्रियायें विशेष रूप हैं इनमें ...... जैनमत का आश्रय लेकर भाट्ट उत्तर देता है
१२८ बौद्ध के द्वारा आरोपित संशय दोष का भाट्ट के द्वारा निराकरण किया जाता है संशय के लक्षण का विचार भेद और अभेद को विवक्षा मानने रूप बौद्ध की मान्यता का निराकरण बुद्धि के बिना पदार्थ में भेद की व्यवस्था नहीं हो सकती है इस बौद्ध की मान्यता का निराकरण किया जाता है।
१४० स्पष्टता और अस्पष्टता ज्ञान के धर्म हैं पदार्थ के नहीं एवं स्पष्ट ज्ञान के समान अस्पष्ट ज्ञान भी प्रमाण है
१४३ अब यहां से जैनाचार्य भावनावादी भाट्ट का खंडन करते हैं
१४७ शब्द से शब्द के व्यापार को अभिन्न मानने में दोष
१४७ शब्द से शब्द के व्यापार को भिन्न मानने में दोष
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