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________________ * अनुक्रम दर्पण पृष्ठ नं० o in x zs us हिन्दी टीका का मंगलाचरण गुरु वन्दना अष्टसहस्री वंदना ग्रन्थ का मंगलाचरण मंगलाचरण का महत्त्व और ग्रन्थकर्ता का उद्देश्य आप्त की परीक्षा विभूतिमत्व हेतु को निर्दोष मानने में युक्ति तटस्थ जैनी द्वारा समाधान-जनक उत्तर एवं कारिका का द्वितीय अर्थ पुनः आचार्य तर्क द्वारा हेतु को व्यभिचारी सिद्ध करते हैं यहाँ कोई तटस्थ जैनी "विग्रहादि महोदयत्वात्" हेतु को निर्दोष सिद्ध करता है पुन: आचार्य हेतु को सदोष सिद्ध करते हैं आप्त परीक्षण का सारांश ar KWAN २२ नियोगवाद यहां पर भावनावादी भाट्ट प्रभाकर द्वारा मान्य नियोगवाद के खंडन हेतु पहले उसका पूर्वपक्ष रखते हैं एकादश प्रकार के नियोग का क्रम से वर्णन नियोग को प्रमाण, प्रमेयादि रूप मानने में दोषारोपण नियोग को सत्-असत् आदि मानने में दोषारोपण नियोग को प्रवर्तक या अप्रवर्तक मानने में दोष नियोग फलरहित है या फलसहित प्रारंभ में जो नियोग के ११ प्रकार से अर्थ किये हैंउनका क्रमशः भाट्ट द्वारा खंडन किया जा रहा है नियोगवाद के खंडन का सारांश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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