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अष्टसहस्री
[ कारिका ६[ वेदांतिभिर्मतस्य मोक्षस्य निराकरणं ] __ 'अनन्तसुखमेव मुक्तस्य, न ज्ञानादिकमित्यानन्दैकस्वभावाभिव्यक्तिर्मोक्ष इत्यपरः सोपि युक्त्यागमाभ्यां बाध्यते । तदनन्तं सुखं मुक्तौ पुंसः संवेद्यस्वभावमसंवेद्यस्वभाव वा ? संवेद्यं चेत्तत्संवेदनस्यानन्तस्य सिद्धिः, अन्यथानन्तस्य सुखस्य 'स्वयं संवेद्यत्वविरोधात् । यदि पुनरसंवेद्यमेव तत्तदा कथं सुखं नाम ? सातसंवेदनस्य सुखत्वप्रतीतेः । स्यान्मतं ते, अभ्युपगम्यते एवानन्तसुखसंवेदनं परमात्मनः । केवल बाह्यार्थानां ज्ञानं नोपेयते1 12तस्येति, तदप्येवं सम्प्रधार्यम्-किं बाह्यार्थाभावाबाह्यार्थसंवेदनाभावो मुक्तस्येन्द्रियापायाद्वा ? प्रथमपक्षे सुखस्यापि संवेदनं मुक्तस्य न स्यात्, तस्यापि बाह्यार्थवदभावात् । पुरुषाद्वैतवादे सम्पूर्ण दुःखों का आत्यंतिक अभाव ही गया है वही 'सिद्धत्व' गुण है और वह सम्पूर्णतया दुःखों का अभाव ही अनन्त प्रशम सुख है। इसलिये मुक्ति में सांसारिक सुखों का अभाव है इस कथन में विरोध नहीं आता है।
[ वेदांती के द्वारा मान्य मुक्ति का खण्डन ] वेदांती-मुक्त जीव के अनंतसुख ही है ज्ञानादिक नहीं हैं इसलिये आनन्द रूप एक स्वभाव की अभिव्यक्ति हो जाना ही मोक्ष है।
जैन-आपका यह कथन भी युक्ति और आगम से बाधित है। मुक्त जीव के अनन्तसुख है वह संवेद्य (अनुभव करने योग्य) स्वभाव वाला है या असंवेद्य स्वभाव वाला है ? अर्थात् ज्ञान के द्वारा जानने योग्य ज्ञेय स्वभाव वाला है या अज्ञेय स्वभाव वाला है ? यदि आप कहें कि वह सुख ज्ञेय स्वभाव वाला है तो अनंतज्ञान की सिद्धि हो जाती है अन्यथा स्वयं आत्मा के द्वारा अनंत सुख ज्ञेय रूप नहीं हो सकेगा। अर्थात् ज्ञान का विषयभूत सुख अनन्त है और ज्ञान उस अनंत सुख को वेदन करे-जाने इसलिये वह भी अनन्त सिद्ध हो जाता है अन्यथा अनन्त सुखों का संवेदन-ज्ञान नहीं बनेगा।
यदि पुनः वह सुख असंवेद्य (अज्ञेय) स्वभाव वाला है तब तो उसे 'सुख' यह नाम भी कैसे बनेगा ? क्योंकि साता के संवेदन को ही सुख कहते हैं।
वेदांती-परमात्मा के अनन्तसुख का संवेदन रूपज्ञान तो हम स्वीकार करते हैं, किन्तु उसके केवल बाह्य पदार्थों का ज्ञान नहीं मानते हैं। 1 अतः परं वेदान्तवादी प्राह । 2 वेदांतवादी भास्करवादी । (ब्या० प्र०) 3 अत्राह जैन: । सोपि मोक्षेऽनंतसुखवादी विचार्यमाणः युक्त्यागमेन च विरुद्धयते दि. प्र.। 4 तद्धयनंतं इति पा. । (ब्या० प्र०) 5 ज्ञेय स्वभावम् । स्वसंवेद्यस्वभावमिति पाठान्तरम् । 6 (विषयरूपस्य सुखस्यानन्त्ये विषयिणस्तद्वेदनस्याप्यानन्तम्- अन्यथा तत्संवेदनानुपपत्तेः)। 7 आत्मना। 8 सुखस्य संवेद्यत्वेति पा. । स्वसंवेद्य इति पा. । अन्यथा ज्ञानस्यानंतस्य सिद्धेरभावे अनंतस्य सुखस्य संवेद्यत्वं विरुद्धयते। (व्या० प्र०) 9 रूप। यसः । (ब्या० प्र०) 10 वेदान्तवादिनः । 11 अभ्युपगम्यते । 12 परमात्मनः । 13 (जैनः) विचार्यम् (वक्ष्यमाणप्रकारेण)। 14 यदि सुखं तदेव परमब्रह्म व तदा संवेद्यसंवेदकभावो न स्यादेकस्यानंशस्य संवेद्यसंवेदकत्वानुपपत्तरित्यभिप्रायः । (ब्या० प्र०)
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