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बौद्ध द्वारा मान्य मोक्ष का खण्डन ]
प्रथम परिच्छेद
हि बाह्यार्थाभावो यथाभ्युपगन्तव्यस्तथा सुखाभावोपि, अन्यथा द्वैतप्रसङ्गात् । अथ द्वैतवादावलम्बिनां' सतोपि 'बाह्यार्थस्येन्द्रियापायादसंवेदनं मुक्तस्येति मतं तदप्यसंगतं, 'तत एव सुखसंवेदनाभावप्रसङ्गात् । 'अथान्तःकरणाभावेपि मुक्तस्यातीन्द्रियसंवेदनेन सुखसंवेदनमिष्यते तहि बाह्यार्थसंवेदनमस्तु तस्यातीन्द्रियज्ञानेनैवेति मन्यतां, सर्वथा 'विशेषाभावात् ।
[ बौद्धाभिमतमोक्षस्य निराकरणं ] "येऽपि निरास्रवचित्तसन्तानोत्पत्तिर्मोक्ष इत्याचक्षते तेषामपि मोक्षतत्त्वं युक्त्या
जैन-तब आपको यह विचार करना होगा कि बाह्य पदार्थों का अभाव होने से मुक्त जीव के बाह्य पदार्थ के ज्ञान का अभाव है या मुक्त जीव के इन्द्रियों के न होने से बाह्य पदार्थ के ज्ञान का अभाव है ? यदि आप प्रथम पक्ष स्वीकार करें तो मुक्त जीव के सूख का भी ज्ञान नहीं होगा क्योंकि बाह्य पदार्थ के समान उसका भी अभाव है। पुरुषाद्वैतवादियों के यहाँ जैसे बाह्य पदार्थों का अभाव माना है वैसे ही सुख का भी अभाव माना है अन्यथा द्वैत का प्रसंग आता है अर्थात् पुरुष और सुख दो वस्तु होने से अद्वैत नहीं बन सकेगा।
द्वैतवादी भाट्ट-बाह्य पदार्थ के होते हुये भी मुक्त जीव के इन्द्रियों का अभाव है अत: मुक्त जीव के ज्ञान नहीं होता है।
जैन-यह कथन भी संगत नहीं है क्योंकि इन्द्रिय के अभाव से ही सुख संवेदन-सुख के ज्ञान का भी अभाव हो जावेगा। यदि कोई कहें कि मुक्त जीव के अंतःकरण का अभाव होने पर भी अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वारा सुख का संवेदन हम स्वीकार करते हैं तब तो पुनः मुक्त जीव के अतीन्द्रिय ज्ञान के द्वारा ही बाह्य पदार्थों का ज्ञान क्यों नहीं मान लेते क्योंकि दोनों में सर्वथा कोई अंतर नहीं है।
भावार्थ-वेदांती लोग अपनी आत्मा को, भगवान् को और सारे जगत् को एक परमब्रह्म रूप मानते हैं उनका कहना है कि जो कुछ चर-अचर, चेतन-अचेतन पदार्थ दृष्टिगोचर हो रहे हैं वे सब उस परमब्रह्म की ही पर्याय हैं अतः इनके सिद्धांत में मोक्ष की कल्पना तो अघटित हो है फिर भी वे लोग कहते हैं कि एक ब्रह्म स्वरूप आत्मा में लीन हो जाना ही मोक्ष है और उस मोक्ष में केवल आनंद ही आनंद रह जाता है । ये लोग मोक्ष में ज्ञान को भी नहीं मानते हैं।
इस पर जैनाचार्यों ने समझाया है कि भाई ! यदि आप मोक्ष में ज्ञान को नहीं मानोगे तो अनंत सुख का अनुभव भी कैसे हो सकेगा? अतः जैसे आप मोक्ष में अनंतसुख का अस्तित्व मानते हैं वैसे ही अनंतज्ञान का भी अस्तित्व मान लीजिये कोई बाधा नहीं है।
1 भाट्टानाम् । 2 मनः । (ब्या० प्र०) 3 इन्द्रियापायादेव। 4 परः । 5 सुखसंवेदनबाह्मार्थसंवेदनयोः। 6 सौगताः । 7 वीतरागद्वेषात्मसन्तानोत्पत्तिः। 8 जीवन्मुक्तः । (ब्या० प्र०) 9 चित्तानां तत्त्वतोऽन्वितसाधनं संतानोच्छेदानुपपत्तिकथनं च युक्त्या बाधनं क्षणक्षयकांताभ्युपगमे मोक्षाभ्युपगमो न घटत एवेति समर्थनमभ्युपायेन बाधनं-दि. प्र.।
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