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________________ ३८२ ] अष्टसहस्री [ कारिका ६चेत् 'कुतस्तदचेतनत्वसिद्धिः ? अचेतना ज्ञानादय उत्पत्तिमत्त्वाद् घटादिवदित्यनुमानादिति चेन्न हेतोरनुभवेन व्यभिचारात्, तस्य चेतनत्वेप्युत्पत्तिमत्वात् । कथमुत्पत्तिमाननुभव इति चेत्परापेक्षत्वाद् बुद्धयादिवत् । परापेक्षोसौ बुद्धयध्यवसायापेक्षत्वात् “बुद्धयध्यवसितमर्थं "पुरुषश्चेतयते” इति 'वचनात् । बुद्धयध्यवसितार्थानपेक्षत्वेनुभवस्य सर्वत्र सर्वदा सर्वस्य पुंसोनुभवप्रसङ्गात् सर्वस्य सर्वशित्वापत्ते स्तदुपायानुष्ठानवैयर्थ्यमेव स्यात् । यदि पुनरनुभवसामान्यमात्मनो नित्यमनुत्पत्तिमदेवेति मतं तदा ज्ञानादिसामान्यमपि नित्यत्वादनुत्पत्तिमद्भवेदित्यसिद्धो हेतु: । ज्ञानादिविशेषाणामुत्पत्तिमत्त्वान्नासिद्ध इति चेत्तय नुभववि अचेतन सिद्ध करते हैं ? सांख्य -"ज्ञानादि अचेतन हैं क्योंकि वे उत्पत्तिमान् हैं घटादि के समान ।" इस अनुमान से ज्ञान आदि अचेतन सिद्ध हैं । जैन—यह कथन ठीक नहीं है क्योंकि आपका हेतु अनुभव के साथ व्यभिचारी है। वह अनुभव चेतन होने पर भी उत्पत्तिमान् है । सांख्य-अनुभव उत्पन्न होने वाला कैसे है ? जैन-यह अनुभव पर की अपेक्षा रखता है इसलिये उत्पत्तिमान् है जैसे बुद्धि पर की अपेक्षा रखती है अतः उत्पत्तिमान है। यह साक्षात्कार लक्षण वाला अनुभव पर की अपेक्षा वाला है क्योंकि बुद्धि के अध्यवसाय (निश्चय) की अपेक्षा रखता है। "बुद्धि के द्वारा निश्चित हुये पदार्थ को पुरुष जानता है"-इस वचन से जाना जाता है। यदि अनुभव बुद्धि से निश्चित पदार्थ की अपेक्षा न रखें तो सभी जगह सभी काल में सभी पुरुष के अनुभव का प्रसंग आ जावेगा । पुनः सभी सर्वदर्शी (सर्वज्ञ) हो जावेंगे और फिर सर्वज्ञ बनने के लिये उपायों के अनुष्ठान व्यर्थ ही हो जावेंगे। सांख्य-आत्मा का जो अनुभव सामान्य है वह नित्य है उत्पत्तिमान् नहीं है। जैन–यदि आपका यह मत है तब तो ज्ञानादि सामान्य भी नित्य होने से उत्पत्तिमान् न होवें । अतः आपका "उत्पत्तिमान्" हेतु असिद्ध हो जाता है। सांख्य-आप जैन के यहाँ ज्ञानादि सामान्य भले ही उत्पत्तिमान् न होवें किन्तु ज्ञानादि विशेष तो उत्पत्तिमान् ही हैं। अतः हमारा हेतु असिद्ध नहीं है। 1 सिद्धान्ती । पृच्छति । 2 पुरुषस्य बुद्धिप्रतिबिम्बतार्थदर्शनमनुभवः। 3 जैनः। 4 साक्षात्करणलक्षणोनुभवः 5 प्रतिबिम्बितं निश्चितं वार्थम् । 6 जानाति । 7 इंद्रियाण्यर्थमालोचयंति तदालोचितं मनः संकल्पयति तत्संकल्पितमहंकारोऽभिमन्यते तदभिमतं बुद्धिरध्यवस्यति तदध्यवसितं च पुरुषश्चेतयते इति सांख्यमतक्रमः । (ब्या० प्र०) 8 तस्य सर्वदशित्वस्योपायानां कारणानां ध्यानमौनादीनामनुष्ठानस्य वैयर्थ्यम्। 9 सांख्यस्य। 10 भवत्यसिद्धो इति पा.-दि. प्र.। 11 उत्पत्तिमत्त्वादिति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org -
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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