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सर्वज्ञसिद्धि . ] प्रथम परिच्छेद
[ २७१ तासंभवद्बाधकप्रमाणश्च' स्यादविद्यमानश्चेति सन्दिग्धविपक्षव्यावृत्तिकमिदं साधनं न मन्तव्यं, विपक्षे बाधकसद्भावात् । तथा हि । यदसत्तन्न सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणम् । यथा मरीचिकायां तोयं सम्भवद्बाधकप्रमाणं, मेरुमूर्द्धनि मोदकादिकं च 'सन्दिग्धासंभव
बाधकम् । सुनिश्चितासंभवद्बाधकप्रमाणश्च सर्वज्ञः । इति प्रकृते सर्वज्ञे सिद्धमपि साधन यदि सत्तां न साधयेत्तदा 'दर्शनं नादर्शनमतिशयीत", अनाश्वासात् स्वप्नादिविभ्रमवत्, तस्य सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वस्याभावे सर्वत्र दर्शने दर्शनाभासे च विशेषाभावात् ।
[ सर्वज्ञस्य साधकबाधकप्रमाणे स्तोऽतः सर्वज्ञस्य सद्भावे संशयोऽस्तीति मन्यमाने प्रत्युत्तरं ] "साधकबाधकप्रमाण भावात्सर्वज्ञे संशयोस्त्वित्ययुक्तं, यस्मात्साधक बाधकप्रमाणयोनिर्णयात् 12भावाभावयोरविप्रतिपत्तिरनिर्णयादारेका स्यात् । साधकनिर्णयात्तत्सत्तायामविप्रतिपत्ति
अविकल । हैं --रहित नहीं हैं। अर्थात् अनुमान प्रयोग में दृष्टांत की कोटि में उसे ही रखा जाता है जो वादी और प्रतिवादी दोनों को मान्य हो एवं साध्य के धर्म और साधन के धर्म से भी सहित होवे । यहाँ प्रत्यक्षादिप्रमाणवत" यह उदाहरण भी निर्दोष है। "सनिश्चितासंभवद बाधक" प्रमाण भी होवे और अविद्यमान भी होवे इस प्रकार से यह हेतु संदिग्ध विपक्षव्यावृत्तिक है ऐसा भी नहीं माना चाहिये । अर्थात् विपक्ष से व्यावृत्त होने में संदेह है ऐसा नहीं कहना चाहिये क्योंकि विपक्ष में बाधक का सद्भाव है । तथाहि-जो असत् है वह सुनिश्चितासंभवद् बाधक प्रमाण नहीं है, जैसे मरीचिका में जल संभवद् बाधक प्रमाण है, मेरु के शिखर पर लड्डू रखे हुये हैं यह संदिग्धासंभवद् बाधकत्व है। अर्थात् इसमें बाधा न होना संदिग्ध है और सर्वज्ञ सुनिश्चितासंभवद् बाधक प्रमाण स्वरूप है। इस प्रकार से प्रकृत सर्वज्ञ में सिद्ध होता हुआ भी हेतु यदि सर्वज्ञ की सत्ता को सिद्ध न करे तब तो प्रत्यक्ष प्रमाण अप्रत्यक्ष का उलंघन नहीं कर सकेगा क्योंकि उसमें कोई विश्वास नहीं रहेगा स्वप्नादि के भ्रान्तज्ञान के समान ।" क्योंकि वह प्रत्यक्ष सुनिश्तिासंभवद् बाधक प्रमाण के अभाव में सर्वत्र प्रत्यक्ष और प्रत्यक्षाभास में समान ही है। [ सर्वज्ञ को सिद्ध करने वाले और बाधित करने वाले दोनों ही प्रमाण पाये जाते हैं अतः सर्वज्ञ
है या नहीं ? यह संशय ही बना रहेगा, ऐसी मान्यता का उत्तर ] मीमांसक-साधक और बाधक दोनों ही प्रमाणों का सद्भाव होने से सर्वज्ञ में संशय हो
1 सर्वज्ञ । (ब्या० प्र०) 2 असति । (ब्या० प्र०) 3 मेरुमूर्द्धनि मोदकादिसत्ताऽसत्तयोः साध्ययोरुभयत्रापि सुनिश्चितासंभवद्वाधकप्रमाणत्वस्य हेतोः संभवात् । 4 सुनिश्चितासंभवबाधकत्वं स्वसाध्यं यदि न साधयेत्तदा विद्यमानमप्यविद्यमान एवेति भावः । (ब्या०प्र०)5 प्रत्यक्षम् । 6 दर्शनादर्शनयोविश्वासनिबन्धनत्वात् । (ब्या० प्र०)7 प्रत्यक्षस्य । 8 विश्वासनिबंधनत्वाभावस्य । (ब्या० प्र०) 9 मीमांसकाशङ्का। 10 साधकबाधकाभावात् इति पा० । (ब्या० प्र०) 11 साधकप्रमाणस्य निर्णयोऽस्ति अग्न्यादी बाधकप्रमाणस्य निर्णयोऽस्ति मरूमरीचिकायां जलमिति । (ब्या० प्र०) 12 सर्वज्ञस्य । 13 संशीतिर्यस्मात् । * मुद्रित अष्टसहनी में “साधक से स्यात्" पर्यंत अष्टशती नहीं मानी है किन्तु मुद्रित अष्टशती एवं हस्तलिखित अष्टशती (दि० प्र०) तथा हस्तलिखित अष्टसहस्री ब्यावर प्रति में यह पाठ अष्टशती है। (ब्या० प्र०)
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