________________
२७० ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ३
' सर्वज्ञस्य साधकं निर्दोषप्रमाणमस्ति । ) तदेवमसिद्धं ज्ञापकानुपलम्भनं सर्वज्ञस्य न बाधकमिति सिद्धं सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वमेव 'साधकम् । तथा हि । अस्ति सर्वज्ञः सुनिश्चितासम्भवबाधकप्रमाणत्वात्प्रत्यक्षादिवत् । प्रत्यक्षादेस्तावद्विश्वास निबन्धनं बाधकासंभव एव सुनिश्चितः । न ततोऽपरं संवादकत्वं प्रवृत्तिसामर्थ्यमदुष्ट कारणजन्यत्वं वा, तस्य तत्रावश्यं भावादिति । प्रत्यक्षादिप्रमाणमुदाहरणं, वादिप्रतिवादिनोः प्रसिद्धत्वात् 'साध्यसाधनधर्माविकलत्वात् । सुनिश्चि
यथाहमनुमानादेः सर्वज्ञं वेद्मि तत्त्वतः ।
तथान्येऽपि नराः सन्तस्तद्बोद्धारो निरंकुशा ॥३४॥" अर्थ-संपूर्ण पदार्थों को प्रत्यक्ष जानने वाले जो सर्वज्ञ हैं उनको जानने वाले मुझसे अतिरिक्त दूसरे पुरुष पहले यहाँ हो चुके हैं, इस समय भी अन्य क्षेत्रों में सर्वज्ञ को प्रत्यक्ष देखने वाले पुरुष और यहाँ पर भी आगम, अनुमान से सर्वज्ञ को जानने वाले पुरुष विद्यमान हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। इस प्रकार का निर्णय जैसे सर्वज्ञवादी को है उसी प्रकार से मुझ मीमांसक को भी यह निश्चय है कि भूतकाल में भी सभी जन अल्पज्ञ थे, अभी हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे। सर्वज्ञ और सर्वज्ञ का ज्ञाता कोई भी पुरुष न हुआ है, न है और न होगा। संपूर्ण मनुष्य त्रिकाल में अल्पज्ञ अवस्था में ही हैं और अल्पज्ञों को ही जानने वाले हैं इस प्रकार से मीमांसक की बात सुनकर जैनाचार्य कहते हैं कि भाई ! आपका कथन युक्ति संगत नहीं है क्योंकि सर्वज्ञ के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले प्रमाणभूत उपाय संभव हैं। देखिये ! जैसे कि मैं अनुमान, आगम आदि प्रमाणों से सर्वज्ञ को वास्तविक रूप से जान लेता हूँ । तथैव दूसरे विचारशील सज्जन पुरुष भी बाधक प्रमाणों से रहित होकर उस सर्वज्ञ को जान लेते हैं और आज भी प्रेक्षावान्-बुद्धिमान् मनुष्य विद्यमान हैं। इसी प्रकार से आगे स्वयं श्री विद्यानंद स्वामी "सुनिश्चितासंभवद् बाधक प्रमाण" से सर्वज्ञ के अस्तित्व को सिद्ध कर रहे हैं।
[ सर्वज्ञ को सिद्ध करने वाला प्रमाण विद्यमान है ) इस प्रकार से यह ज्ञापकानुलंभन हेतु सर्वज्ञ का बाधक नहीं है इसलिये "सुनिश्चितासंभवद्बाधक प्रमाण" हेतु ही सर्वज्ञ का साधक सिद्ध है। तथाहि-"सर्वज्ञ है क्योंकि सुनिश्चितासंभवद् बाधक प्रमाण है प्रत्यक्षादि के समान ।”
प्रत्यक्षादि प्रमाण में विश्वास निमित्तक बाधक का न होना ही सुनिश्चित है उससे भिन्न प्रवृत्तिसामर्थ्य अथवा अदुष्ट कारण जन्यत्व हेतु संवादक-विश्वास निमित्तक नहीं हैं क्योंकि वे संवादकत्वादि उस "सुनिश्चितासंभवबाधक' में अवश्यंभावी हैं एवं इस अनुमान में "प्रत्यक्षादि प्रमाण" उदाहरण हैं क्योंकि वे वादी और प्रतिवादी दोनों को प्रसिद्ध हैं और साध्य-साधन धर्म से
1 सर्वज्ञस्य । 2 विश्वासस्य प्रतीतेः । 3 संवादकत्वादेः। 4 सुनिश्चितासम्भवबाधके । 5 अस्तित्व । (ब्या० प्र०)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org