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२६० ] • अष्टसहस्री
[ कारिका ३'साधनस्य स्यात् । पुरुषविशेषस्य तत्सम्भावनायां संभाव्यव्यभिचारित्वमेवेति चेन्न, 'तस्यासिद्धत्वातु, साधकाभावात्सर्वपुरुषाणां त्रिविप्रकृष्टार्थसाक्षात्कारित्वानुपपत्तेरिति ।
[ अधुना मीमांसकाभिमत सर्वज्ञाभावस्य मीमांसां कुर्वति जैनाचार्याः । ] 'तदेतत्सर्वमपरीक्षिताभिधानं मीमांसकस्य । न हि सर्वज्ञस्य निराकृतेः' प्राक् सुनिश्चितासंभवत्साधकप्रमाणत्वं सिद्धं येन परः प्रत्यवतिष्ठेत । नापि बाधकासंभवात्पर प्रत्यक्षादेरपि 10विश्वासनिबन्धनमस्ति, तत्प्रकृतेपि सिद्धं । यदि तत्सत्तां न साधयेत्15
यदि आप कहें कि पुरुष विशेष में उस अतींद्रिय प्रत्यक्ष की संभावना होने पर वह हेतु संभाव्य से व्यभिचारी ही है, यह कथन भी ठीक नहीं है क्योंकि वह पुरुष विशेष असिद्ध ही है । साधक प्रमाण का अभाव होने से सभी पुरुष तीन प्रकार के (देश, काल और स्वभाव से) विप्रकृष्ट-दूरवर्ती अर्थ का साक्षात्कार कर नहीं सकते हैं।
इस प्रकार मीमांसक ने अपना पूर्वपक्ष रखा है ।
[ अब मीमांसकाभिमत सर्वज्ञ के अभाव के विषय में जैनाचार्य मीमांसा करते हैं ]
जैन-आप मीमांसक का यह सभी कथन अपरीक्षित-अविचारित ही है क्योंकि सर्वज्ञ के निराकरण के पहले "सुनिश्चितासंभवसाधकप्रमाण" सिद्ध नहीं है कि जिससे आप मीमांसक हमारे प्रतिकूल कुछ बोल सकें अर्थात् आप हमारी प्रतिकूलता नहीं कर सकते हैं । "बाधक असंभव है" इससे भिन्न-अन्य कोई भी संवादकत्वादि हेतु प्रत्यक्षादि प्रमाण में भी विश्वास निमित्तक नहीं है।
वह "बाधकासंभवत्व" प्रकृत-सर्वज्ञ में भी सिद्ध होता हुआ यदि उस सर्वज्ञ की सत्ता को सिद्ध न कर सके, तब तो सर्वत्र भी-सत्यदर्शन और असत्यदर्शन में समान होने से उस "सुनिश्चितासंभवद्बाधक प्रमाण" के अभाव में दर्शन-प्रत्यक्ष, अदर्शन-प्रत्यक्षाभास का उलंघन नहीं कर सकता क्योंकि कोई विश्वास नहीं है विभ्रम के समान ।"*
मीमांसक-सर्वज्ञ के निराकरण के पहले "सुनिश्चितासंभवत्साधकप्रमाण" सिद्ध नहीं होवे तो
1 प्रत्यक्षादिप्रमाणत्वादिति साधनस्य । 2 तस्य अतीन्द्रियप्रत्यक्षस्य । 3 भा। (ब्या० प्र०) 4 पुरुषविशेषस्य । 5 देशकालस्वभाव । (ब्या० प्र०) 6 अत्राह स्याद्वादी। 7 निराकृते सर्वज्ञे भनिराकृते वा सुनिश्चितासंभवत्साधकप्रमाणत्वं वर्तते इति विकल्पाभिप्रायः । (ब्या० प्र०) 8 परो मीमांसकः प्रत्यवतिष्ठेत (प्रतिकूलतामवलम्बेत) अपि तु नेत्यर्थः। 9 अन्यत् संवादकत्वादिकम् । 10 ता । (ब्या० प्र०) 11 बाधकासम्भवत्वम् । 12 सुनिश्चितासंभवबाधकप्रमाणत्वं । (ब्या० प्र०) 13 सर्वज्ञे। 14 सिद्धं सत् । 15 तहीति शेषः ।
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