________________
वैनयिक मत में परस्पर विरोध ]
प्रथम परिच्छेद
[ २४१ विशेषार्थ-ब्रह्माद्वैतवादी और चार्वाक ये दोनों परस्पर सर्वथा विपरीत बातों को लिये हुए हैं । ब्रह्माद्वैतवादी तो चेतन अचेतन सभी पदार्थों को ब्रह्म की ही पर्याय मानता है और चार्वाक सम्पूर्ण चेतन अचेतन पदार्थों को भूतचतुष्टय रूप जड़ के ही गुण धर्म मानता है । अद्वैतवादी कहता है कि पदार्थों में जन्म, मरण, उत्पाद, व्यय आदि जो भी परिणमन पाया जाता है वह सब अविद्या का विलास है। सभी पर्यायें अंत में ब्रह्म में ही विलीन हो जाती हैं किन्तु चार्वाक सर्वथा इससे विपरीत जीव के प्रति जन्म मरण के अस्तित्व को न मानकर जड़ से ही चेतन की उत्पत्ति मानता है और मरण के अनन्तर चैतन्य का सर्वथा अभाव मानकर भूतचतुष्टय में ही चैतन्य की परिसमाप्ति मान लेता है । ब्रह्मद्वैतवादी चेतन स्वरूप एक परमब्रह्म से ही चेतन की एवं विजातीय स्वरूप अचेतन की भी उत्पत्ति मान रहा है तथैव चार्वाक अचेतन रूप पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु इन भूतचतुष्टयों से अचेतन पदार्थों की उत्पत्ति मानकर पुनरपि इन्हीं भूत चतुष्टयों से चेतन स्वरूप विजातीय द्रव्य की उत्पत्ति मान रहा है।
__इसी प्रकार से सांख्य और बौद्ध सिद्धांत भी सर्वथा परस्पर विरुद्ध हैं। सांख्य सभी चेतन अचेतन पदार्थों को सर्वथा कूटस्थ नित्य अपरिणामी मानता है, बौद्ध सभी चेतन अचेतन पदार्थों को प्रतिक्षणध्वंसी, सर्वथा क्षणिक मान लेता है, साँख्य पर्यायों को भी नित्य कह रहा है और बौद्ध द्रव्य को भी उत्पाद, व्यय रूप कह रहा है ।
____सांख्य सत्कार्यवादी है उसका कहना है कि कारण में कार्य सर्वथा विद्यमान है केवल तिरोभूत है, निमित्त कारणों से उस कार्य का प्रादुर्भाव हो जाता है। यथा-मिट्टी में घट विद्यमान है कुंभकार, दंड, चाक आदि कारणों से प्रकट हो जाता है न कि उत्पन्न, किन्तु बौद्ध सर्वथा इससे विपरीत असत्कार्यवादी है । वह कहता है कि कारण तो उसी क्षण जड़ मूल से विनष्ट हो जाता है पुनः कार्य उत्पन्न होता है । जैसे-मृत्पिड का सर्वथा विनाश होकर ही घट का उत्पाद हुआ है, विनष्ट हुये कारण से कार्य को उत्पन्न हुआ मानने वाला यह बौद्ध तो अपनी बुद्धिमत्ता की ही डींग मार रहा है। सांख्य आविर्भाव और तिरोभाव मानकर के किसी भी वस्तु में उत्पाद-व्यय नहीं मानता है तो बौद्ध द्रव्य में भी स्थिर-ध्रौव्यावस्था को न मान कर के सर्वथा द्रव्य का प्रतिक्षण जड़ मूल से नाश मान रहा है और वासना-संस्कार से सभी वस्तुओं की व्यवस्था स्मृति आदि व्यवहार मानता है ।
निरीश्वरवादी सांख्य प्रकृति रूप अचेतन के द्वारा ही सारे संसार का उत्पाद मानता है तो वैशेषिक एक सदाशिव स्वरूप महेश्वर के द्वारा इस सृष्टि का उत्पाद मानते हैं मतलब सांख्य ने जड़ को सृष्टि का कर्ता माना है तो वैशेषिक महेश्वर चेतन भगवान् को सृष्टि का कर्ता मान रहे हैं । इन सभी सिद्धांतों में परस्पर में विरोध वैसे ही पाया जाता है जैसे कि हिंदू-मुस्लिम में देखा जाता है। यदि हिंदू संप्रदाय वाले शिर पर शिखा रूप चोटी रखना धर्म कहते हैं तो मुसलमान चोटी कटाकर धर्म मानते हैं। हिंदू दिन में भोजन करना व्रत समझते हैं तो मुसलमान रात्रि में रोजा खोलते हैं । हिन्दू सूर्य को अर्घ चढ़ाते हैं तो मुसलमान चन्द्र को मानकर व्रत करते हैं, इत्यादि।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org