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१७२ ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ३
विशेष सूचना
पृष्ठ २५ से १७१ तक नियोगवाद, विधिवाद एवं भावनावाद
का विषय अतीव क्लिष्ट एवं नीरस होते हुए भी भावार्थ-विशेषार्थ के द्वारा सरल बनाने का
पूर्ण प्रयत्न किया गया।
अब आगे पृष्ठ १७३ से अपौरुषेय वेद खंडन, चार्वाक मत खंडन आदि का सरल एवं मधुर प्रकरण
प्रारम्भ हो रहा है।
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