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अष्टसहस्री
[ कारिका ३प्रत्येक वस्तु अनुवृत्त ज्ञान और व्यावृत्त ज्ञान के विषयभूत है। एवं पदार्थ के पूर्व आकार का विनाश उत्तर आकार का प्रादुर्भाव इन दोनों अवस्थाओं में ध्रौव्य रूप से स्थिति का रहना, इन तीनों सहित अवस्था विशेष को परिणाम कहते हैं । इस परिणमन स्वभाव से ही वस्तु में अर्थ क्रिया होती है अतः प्रत्येक वस्तु में सत् आदि रूप से समानता के होने से अनुवृत्त ज्ञान एवं विसदृशता के होने से व्यावत्त ज्ञान पाया जाता है । अनुवृत्त ज्ञान को सामान्य एवं व्यावृत्त ज्ञान को विशेष कहते हैं। उस सामान्य के दो भेद हैं-तिर्यक् सामान्य, ऊर्ध्वता सामान्य । “सदृश परिणामस्तिर्यखंडमुण्डादिषु गोत्ववत् ।" समान परिणाम को तिर्यक् सामान्य कहते हैं जैसे काली, चितकबरी, खाँडी, मुण्डी आदि सभी गायों में गोत्व सामान्य विद्यमान है । "परापरविवर्तव्यापिद्रव्यमूर्ध्वता मृदिव स्थासादिषु ।” पूर्व
और उत्तर पर्याय में रहने वाले द्रव्य को ऊर्ध्वता सामान्य कहते हैं जैसे-स्थास, कोश, कुशूल आदि पर्यायों में मिट्टी व्याप्त रहती है, यहाँ मिट्टी रूप द्रव्य ऊर्ध्वता सामान्य है। अथवा महा सत्ता और अवांतर सत्ता के भेद से भी सत् सामान्य के २ भेद हैं।
"सत्ता सव्वपयत्था सविस्सरूवा अणंतपज्जाया।
भंगुप्पादधुवत्ता सप्पडिवक्खा हवदि एक्का ॥ पंचास्तिकाय गाथा ॥८॥ अर्थ--सत्ता एक है, वह सब पदार्थों में वर्तमान है, विश्व रूप है, अनन्त पर्याय वाली है, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्यात्मक है और अपने प्रतिपक्षी से सहित है।
इस प्रकार से समस्त पदार्थों में रहने वाली सत्ता को महा सत्ता कहते हैं और प्रत्येक वस्तु की पृथक-पृथक सत्ता अवांतर सत्ता कहलाती है । मतलब यह है कि जब हम सत्सामान्य को व्यापक दृष्टिकोण से देखते हैं तब सभी पदार्थ सत् रूप ही प्रतीत होते हैं यही महा सत्ता है । जब प्रतिनियत वस्तु के अस्तित्व को देखते हैं तब यह सत्ता अवांतर सत्ता कहलाती हैं,
विशेष के भी दो भेद हैं—“पर्यायव्यतिरेकभेदात् ॥" पर्याय और व्यतिरेक । पर्याय विशेष का लक्षण"एकस्मिन् द्रव्ये क्रमभाविनः परिणामाः पर्यायाः आत्मनि हर्षविषादादिवत् ॥८॥
अर्थ एक ही द्रव्य में क्रम से होने से परिणामों को पर्याय कहते हैं। जैसे कि आत्मा में हर्ष और विषाद आदि परिणाम । व्यतिरेक का लक्षण
"अर्थातरगतो विसदृशपरिणामो व्यतिरेको गोमहिषादिवत्" ॥६॥
अर्थ-एक पदार्थ की अपेक्षा दूसरे पदार्थ में रहने वाले विसदृश परिणाम को व्यतिरेक कहते हैं जैसे कि गो से महिष में एक विलक्षण--भिन्न ही परिणमन देखा जाता है।
यहाँ तक जैनों की मान्यता रखी गयी है अब इन सासान्य और विशेष में जो अन्य मतावलंबी बौद्ध, नैयायिक और मीमांसक (भाट्ट) विसंवाद करते हैं उन पर विचार किया जा रहा है।
बौद्ध वस्तु में सामान्य धर्म को नहीं मानते हैं उनका कहना है कि सामान्य और विशेष दोनों
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