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________________ १६४ ] अष्टसहस्त्री [ कारिका ३ समानप्रत्ययात् । ननु पूर्वमनभूतव्यक्तयन्तरस्यैकव्यक्तिदर्शने समानप्रत्ययः कस्मान्न भवति ? तत्र सदृशपरिणामस्य भावादिति चेत्तवापि विशिष्टप्रतीतिः कस्मान्न भवति ? वैसादृश्यस्य' भावात् । परापेक्षत्वाद्विशिष्टप्रतीतेरिति चेत्तत एव 'तत्र समानप्रत्ययोपि ' मा भूत् । न हि स परापेक्षो न भवति, परापेक्षामन्तरेण क्वचित्कदाचिदप्यभावाद् 'द्वित्वादिप्रत्ययवद्दूरत्वादिप्रत्ययवद्वा । द्विविधो हि वस्तुधर्मः परापेक्षः परानपेक्षश्च "वर्णादिवत् स्थौल्यादिवच्च । ननु च " सादृश्ये सामान्ये स एवायं गौरिति प्रत्ययः कथं शवलं दृष्ट्वा धवलं पश्यतो घटेतेति “चेदेकत्वोपचारादिति ब्रूमः 15 । भाट्ट - पूर्व में जिसने भिन्न-भिन्न विशेष का अनुभव नहीं किया है उस पुरुष को एक विशेष के देखने के समान प्रत्यय क्यों नहीं होगा ? क्योंकि वहाँ पर सदृश परिणाम देखा जाता है । जैन - यदि ऐसा कहो तो आपको भी एक विशेष के देखने में विशेष प्रतीति क्यों नहीं होती है ? क्योंकि भिन्न प्रतीति रूप विशेष में वैसादृश्य परिणाम भी देखे जाते हैं । भाट्ट - वह भिन्न प्रतीति पर की अपेक्षा रखती है । जैन - उसी प्रकार से वहाँ एक विशेष के देखने में समान ज्ञान भी मत होवे । अर्थात् यह उसके समान हैं एवं वह इसके समान है इसमें भी तो पर की अपेक्षा है और वह परापेक्ष नहीं है ऐसा तो आप कह नहीं सकते । पर की अपेक्षा के बिना कहीं पर किसी काल में भी वह सामान्य हो नहीं सकेगा जैसे- द्वित्वादि ज्ञान अथवा दूरत्वादि ज्ञान पर की अपेक्षा के बिना हो नहीं सकते हैं । अर्थात् द्वित्वादिज्ञान एकत्वादि से निष्ठ हैं अतः पर की अपेक्षा के बिना नहीं होते हैं एवं दूरत्व आदि ज्ञान भी निकट की अपेक्षा के बिना नहीं होते हैं । वस्तु का धर्म दो प्रकार का है पर की अपेक्षा रखने वाला और पर की अपेक्षा नहीं रखने वाला । जैसे वर्णादि श्वेत पीतादि पर की अपेक्षा नहीं रखते हैं एवं स्थूलता, सूक्ष्मतादि एक दूसरे की अपेक्षा से होते हैं । भाट्ट - सादृश्य सामान्य में "यह वही गौ है" इस प्रकार का ज्ञान होता है वह ज्ञान शबलचितकबरी गाय को देख कर श्वेत गाय को देखते हुए मनुष्य को "यह वही गौ है" ऐसा ज्ञान कैसे होगा ? 1 भाट्ट | 2 पुंसः । 3 एकव्यक्तिदर्शने । 4 विशिष्टप्रतीतो विशेषे । 5 भाट्ट: । 6 एकव्यक्तिदर्शने । 7 अनेन देवदत्तेन समानोयं जिनदत्तो, जिनदत्तेन समानो देवदत्तो वेत्यत्रापि परापेक्षत्वं यतः । 8 व्यक्तौ । (ब्या० प्र० ) 9 द्वित्वादिप्रत्ययः एकत्वादिनिष्टां परापेक्षां विना नोपपद्यन्ते । 10 श्वेतपीतादिवत् । 11 भाट्ट: । मत्त्वे गोवे । 13 शवलं गां दृष्ट्वा धवलं गां पश्यतः पुंसः स एवायं गौरिति प्रत्ययः कथं घटते ? सदृशो धवल इत्येकत्वोपचारात् । 15 जैनाः । 12 सास्नादि - 14 शवलेन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001548
Book TitleAshtsahastri Part 1
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1889
Total Pages528
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size12 MB
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