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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
व्यापारान्तरेण प्रतिपाद्यते चेतहि तद्भाव्यः स्यात् । तद् व्यापारान्तरं तु भावनानुषज्यते । तदपि यदि शब्दादर्थान्तरं तदा तद्भाव्यं व्यापारान्तरेण स्यात् । तत्तु भावनेत्यपरापरभाव्यभावनापरिकल्पनायामनवस्थाप्रसङ्गः ।
[ भाट्टः शब्दात्तस्य व्यापार भिन्नाभिनं मन्यते तत्रापि दोषानुद्भावयंति जैनाचार्याः ] ... 'अथ "वाक्यात्तद्व्यापारः कथञ्चिदनन्तरम् 'विष्वग्भावेनानुपलभ्यमानत्वात् कुण्डादेबंदरादिवत् । कथञ्चिदर्थान्तरं च विरुद्धधर्माध्यासात्-'तदनुत्पादे' प्युत्पादात्तदविनाशेपि" च विनाशादाकाशादन्धकारवदिति12 मतम् । तदाप्युभय''दोषानुषङ्गः । स्यान्मतम् -
[ शब्द से शब्द के व्यापार को भिन्न मानने में दोष ] .. यदि पुनः द्वितीय पक्ष लेवें कि शब्द से शब्द का व्यापार भिन्न ही है तब तो वह शब्द के द्वारा प्रतिपाद्यमान व्यापार कारणभूत-व्यापारन्तर से यदि प्रतिपादित किया जाता है तब तो उस शब्द व्यापार से पुरुष का व्यापार संभव हो सकता है। किन्तु वह व्यापारांतर ही भावना कहलायेगा। और यदि उस व्यापारांतर को भी शब्द से भिन्न मानों तब तो वह भी अन्य व्यापार से ही भाव्य होगा, पुनः वह भी भावना कहलायेगा इस प्रकार अपरा पर भाव्य-भावना की कल्पना करते रहने से अनवस्था दोष आ जावेगा।
[ भाट्ट शब्द से उसके व्यापार को भिन्न और अभिन्न दोनों रूप मानता है उस पर भी जैनाचार्य दोषा
रोपण करते हैं ] भाट्ट-शब्द से उसका व्यापार कथंचित् अभिन्न है क्योंकि विष्वग्भाव-पृथकभाव से उस व्यापार की उपलब्धि नहीं होती है। जैसे कुंडादि से बदरी फल (बेर) पृथक् रूप से उपलब्ध हो रहे हैं अतः वे कथंचित् कंडादि से अभिन्न नहीं हैं। एवं शब्द से शब्द का व्यापार कथंचित् भिन्न है क्योंकि विरुद्ध धर्माध्यास देखा जाताहै। उस शब्द के उत्पन्न न होने पर भी उसका पृथक् उत्पाद देखा जाता है एवं उस शब्द के विनष्ट न होने पर भी उस व्यापार का विनाश देखा जाता है । जैसे आकाश के उत्पन्न एवं विनष्ट न होने पर भी अन्धकार उत्पन्न होता हुआ और नष्ट होता हुआ देखा जाता है ।
जैन-आपकी ऐसी मान्यता में भी उभय पक्ष में दिये गये सभी दोष आ जाते हैं। क्योंकि आप स्याद्वादी नहीं हैं, आप अपेक्षाकृत कथंचित् का अर्थ नहीं समझते हैं।
भावार्थ- भाट्ट ने शब्द के व्यापार को शब्द भावना कहा है। इस पर आचार्य ने प्रश्न किया
1 कारण भतेन । 2 जैनः। 3 शब्दव्यापारेण हि पुरुषव्यापारो भाव्यते इत्युक्तं पूर्व तथा तद्वदित्यर्थः। 4 व्यागरान्तरम् । 5 भाट्टः। 6 शब्दात् । 7 पृथग्भावेन । 8 व्यतिरेकदृष्टान्तः । यत्र कथञ्चिदनन्तरत्वं न भवति तत्र विष्वग्भावेनोपलभ्यमानत्वं भवति । यथा कुण्डादेबंदरादिः। 9 शब्द। 10 पथक। 11 शब्द व्यापारस्य । 12 अन्धकारादिवत् इति पा० । (ब्या० प्र०) 13 जैनः । 14 अनन्तिरार्थान्तरोक्तदोषः स्यात। 15 भट्टस्य ।
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