________________
१४० ]
अष्टसहस्री
[ कारिका ३स्वभावतापत्तेः । कदाचित्तद्व्यभिचारे' भेदाभेदव्यवस्थितेरपि' व्यभिचारप्रसक्तेः कुतो न तत्सङ्करप्रसक्तिः ? सुदूरमपि गत्वा "वस्तुस्वभावावलम्बनादेव तत्परिहारमिच्छता वस्तुस्वभावावेव भेदाभेदौ परेणाभ्युपगन्तव्यो। 'ततो यदभिन्नं साधारणं वस्तुस्वरूपं तदेव सामान्यं सिद्धम् । न पुनरन्यापोहमात्रं 10विकल्पबुद्धिपरिनिष्ठितम्--यतः करोति-- सामान्यं यज्यादिविशेषव्यापि वास्तवं न भवेत् । तदुपलम्भेपि च विशेषे सन्देहोनुपलभ्यमानेपि स्मृतिविषये न स्यात् ।।
[ बुद्धिभेदमंतरेण पदार्थस्य भेदव्यवस्था न भवतीति बौद्धमान्यताया निराकरणं ] 12ननु च स्थाणुपुरुष'विविक्तमपरमूर्खतासामान्यं यज्यादिविशेष व्यतिरिक्तं च
भाट्ट नहीं ! हम ऐसा प्रश्न करेंगे कि निर्विकल्प ज्ञान के साथ वह वासना व्यभिचरित है या नहीं? यदि उस वासना को निर्विकल्प ज्ञान से व्यभिचारित नहीं कहोगे तब तो वह वस्तु का स्वभाव हो जावेगी । अर्थात् जो जिससे अभिन्न है वह उस स्वरूप है इस तरह वासना को वस्तु स्वभाव मान लेने पर बौद्धमत का व्याघात हो जावेगा। यदि कदाचित् ज्ञान के साथ उस वासना को व्यभिचार-भिन्न मानोगे, तब तो भेदाभेद की व्यवस्था से भी व्यभिचार का प्रसंग आ उनमें संकर दोष कैसे नहीं आवेगा?
बहुत दूर जाकर भी वस्तु स्वभाव का अवलंबन लेकर ही उन दोषों का परिहार करने की इच्छा रखते हुए आप सौगत को भेदाभेद-विशेष सामान्य इन दोनों को वस्तु का स्वभाव ही स्वीकार करना चाहिये। इसलिए जो अभिन्न रूप है, सभी वस्तुओं में साधारण वस्तु का स्वरूप है वही सामान्य है यह बात सिद्ध हो गयी। किन्तु अन्यापोह मात्र अवस्तु विकल्प बुद्धि से परिनिष्ठित नहीं हैं कि जिससे "करोति" यह सामान्य पद यज्यादि विशेष में व्यापी और वास्तविक न हो सके, अर्थात् वास्तविक ही सिद्ध होता है और जिससे कि उस विशेष के उपलब्ध होने पर भी एवं स्मृति के विषय की उपलब्धि न होने पर भी संदेह न हो सके, अर्थात् संदेह होगा ही होगा। [ बुद्धि भेद के बिना पदार्थ में भेद की व्यवस्था नहीं हो सकती है इस बौद्ध की मान्यता का
निराकरण किया जाता है ] सौगत-स्थाणु और पुरुष के विशेष से रहित अपर ऊर्ध्वता-सामान्य और यज्यादि विशेष से भिन्न करोति सामान्य वास्तविक नहीं है क्योंकि बुद्धि से अभेद होता है अर्थात् सामान्य को ग्रहण
1 यद्यस्मादभिन्नं तत्तदात्मकम् । वस्तुस्वरूपा वासना यदि तहि बौद्धमतव्याघातः वस्तुस्वभावतापत्तेर्वासनायाः। 2 भिन्नत्वे । 3 पञ्चम्येकवचनम् । 4 बाह्य । (ब्या० प्र०) 5 विशेषसामान्ये । 6 सौगतेन । 7 बाह्यवस्तुस्वभावालम्बनादेव-सङ्करपरिहारो यतः। 8 सकलपदार्थेषु साधारणम् । 9 अवस्तुमात्रम्। 10 सामान्यं नेति विकल्पबुद्धिपरिगृहीतम् । 11 वक्रोक्त्या वाच्यम् । 12 सौगतः। 13 विशेषौ। 14 भिन्नम् ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org.