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भावनावाद ] प्रथम परिच्छेद
[ १३६ तद्रूपानुवृत्तस्य वस्तुमात्रस्य निर्बाधबोधाधिरूढस्य सिद्धर्भेदमात्रस्याप्रतिष्ठितत्वात्-सर्वदा बहिरन्तश्च भेदाभेदात्मनो वस्तुनः प्रतिभासनात् ।
[ भेदाभेदी विवक्षावशवर्तिनौ इति बौद्धस्य मान्यताया निराकरणं ] न चैतौ भेदाभेदौ विवक्षामात्रवशत्तिनौ--'सर्वत्र तत्सङ्करप्रसङ्गात्।। 11येनात्मना12 भेदव्यवस्था तेनैवाभेदव्यवस्थितिः स्यात्-तद्विवक्षाया' निरंकुशत्वात् । 14पूर्ववासना प्रतिनियमाद्विवक्षायाः प्रतिनियमसिद्धेर्न तद्वशाभेदाभेदव्यवस्थितौ सङ्करप्रसङ्ग इति चेत् कुतस्त”. द्वासनाप्रतिनियम: ? 18प्रबोधकप्रत्ययप्रतिनियमादिति चेन्न-1तदनियमे तदनियमप्रसङ्गात् । पूर्वस्ववासनाप्रतिनियमात्त्रकृतवासनाप्रतिनियम इति चेन्न--20तस्याः संविदव्यभिचारे 2-वस्तु
अतएव तद्रूप से अनुवृत्त-युक्त वस्तु मात्र निर्बाध ज्ञान से अधिरूढ़ है-सामान्य-विशेष विषयक ही सिद्ध है किंतु सामान्य निरपेक्ष विशेष रूप भेद मात्र वस्तु व्यवस्थित नहीं है। क्योंकि सर्वदा बाह्य घटादि और अंतर्ज्ञान रूप बाह्याभ्यंतर वस्तु भेदाभेदात्मक-सामान्य विशेषात्मक ही प्रतिभासित होती हैं।
[भेद और अभेद को विवक्षा के आश्रित मानने रूप बौद्ध की मान्यता का निराकरण 1
ये दोनों भेदाभेद विवक्षा के वशवर्ती भी नहीं हैं। अन्यथा-सर्वत्र संकर दोष का प्रसंग आ जावेगा। अर्थात् जिस स्वरूप से भेद व्यवस्था है उसी स्वरूप से अभेद व्यवस्था भी हो जावेगी क्योंकि वह विवक्षा तो निरङ्कुश है अत: भेदाभेद विवक्षा के वशवर्ती नहीं हैं।
सौगत-पूर्व की वासना के प्रतिनियम से विवक्षा का प्रतिनियम सिद्ध है अतः उसके निमित्त से भेदाभेद की व्यवस्था में संकर दोष का प्रसंग नहीं आता है।
भाट्ट-यदि ऐसा कहो तो उस वासना का प्रतिनियम किस प्रकार से है ? सौगत-प्रबोधक-निर्विकल्प ज्ञान के प्रतिनियम से उस वासना का प्रतिनियम सिद्ध है।
भाट्ट-ऐसा नहीं कहना। अन्यथा उस प्रबोधक प्रत्यय में पूर्व वासना का प्रतिनियम न करने पर प्रबोधक प्रत्यय का भी प्रतिनियम नहीं बन सकेगा।
सौगत-पूर्व स्ववासना के प्रतिनियम से प्रकृत वासना का प्रतिनियम बन जाता है।
1 नन्वभेद एव नास्ति ततो भेदाभेदात्मकं कुत इत्याशङ्कायां स्याद्वादमाश्रित्य भट्टो वदति । 2 युक्तस्य । 3 सामान्यविशेषरूपस्य विषयस्य। 4 बौद्धाभिप्रायमनद्य दूषयति । (ब्या० प्र०) 5 सामान्यनिरपेक्षस्य विशेषस्य। 6 बहिघटादिरन्तर्वस्तुज्ञानम् । 7 सामान्यविशेषात्मकस्य। 8 सौगत आह अभेदवभेदोपि विवक्षावशवव-सर्वविकल्पातीतत्वादस्येति । 9 भा (तृतीया) 10 कथं । (ब्या० प्र०) 11 स्वरूपेण । (ब्या० प्र०) 12 कथ तथाहि । 13 ईदृशबाह्यार्थाभावात् । (ब्या० प्र०) 14 सौगतः । 15 संस्कार। (ब्या० प्र०) 16 भाट्टः। 17 पूर्व । 18 प्रकट निर्विकल्पकज्ञान। 19 प्रबोधकप्रत्यये पूर्ववासनाया अनियमे प्रबोधकप्रत्ययस्यानियमत्वप्रसङ्गात् । 20 निर्विकल्पकज्ञानेन सह तस्या वासनाया व्यभिचारोऽव्यभिचारी वेति विकल्पद्वयं करोति भाट्टः। 21 वासनायाः वस्तुत्वं नांगीकरोषि । (ब्या० प्र०)
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