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अष्टसहस्री
[ कारिका ३
भेदात् 'स्वव्यापारभेदो भविष्यति क्रियते कटो 'देवदत्तयज्ञदत्ताभ्यामिति महदसमञ्जसं' स्यात् । तथा हि ।एकत्वात्कर्मणः प्राप्त क्रियैकत्वं तथाभिदः । 'कर्तृ भेदादितीत्थं च किं 1 कर्त्तव्यं विचक्षणः ॥इति।। 1'तदप्यसत्यम्-12प्रतीतिविरोधात् । प्रतीयते हि धात्वर्थस्य भेदादेकवचनं देवदत्तयज्ञदत्ताभ्यामास्यते । स च धात्वर्थो न नियोगः—नियोगस्या प्रत्ययार्थत्वात् । स च धात्वर्थातिरिक्तः कर्तृ साध्यः । तस्य कत्तु भेदाद्भद इति । ततः कटं कुरुत20 इति द्विवचनम् । धात्वर्थस्तु शुद्धो न कारकभेदाद्भ दी।
यदि कहो कि कारक के भेद से अपने व्यापार में भेद हो जावेगा तब तो देवदत्त और यज्ञदत्त के द्वारा कट (चटाई) किया जाता है यह कथन भी बहुत ही असमंजस युक्त हो जावेगा । तथाहि--
श्लोकार्थ-कट लक्षण कर्म का एक रूप है अतः क्रिया में एकत्व प्राप्त हुआ है क्योंकि कर्ता में भेद देखा जाता है अतः कर्ता के निमित्त से क्रिया भी दो प्रकार की हो जाती है। इस प्रकार से क्रिया में भी एकत्व अनेकत्व प्रकार हो जाने से भेद हो जाता है तो विचक्षण पुरुष क्या कर सकते हैं ? अर्थात् वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं ।
इस प्रकार का आप बौद्धों का कथन भी असत्य है क्योंकि प्रत्यक्ष से प्रतीति में विरोध आता है "देवदत्तयज्ञदत्ताभ्यां आस्यते" ऐसे भाव वाक्य में धात्वर्थ के अभेद से एक प्रतीति में आता है और वह धातु का अर्थ नियोग नहीं है क्योंकि नियोग तो प्रत्यय का अर्थ है वह धात्वर्थ से भिन्न है और वह पुरुष का व्यापार धात्वर्थ क्रिया से अतिरिक्त-भिन्न कर्ता से साध्य है। उस प्रत्यय के अर्थ में कर्ता के भेद से भेद होता है। इसलिए "कटं कुरुतः" इसमें द्विवचन होता है किन्तु भाव रूप-शुद्ध धात्वर्थ, कारक के भेद से भेद रूप नहीं होता है।
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रामचत हा
विशेषार्थ-व्याकरण में जिसमें प्रत्यय (विभक्ति) लगकर क्रिया बन जाती है उन्हें धातु कहते हैं जैसे भू पच् आदि । वे धातु दो प्रकार की होती हैं सकर्मक और अकर्मक ।
1 व्यापारभेदो इति पा० । (ब्या० प्र०) 2 तर्हि । 3 उदाहरणम्। 4 कारकभेदे क्रियावचनभेदो न जायेत । (ब्या० प्र०) 5 कटलक्षणस्य । 6 भेदात् । 7 तथाभिदा, कर्तृ भेद इतीत्थं चेति पाठान्तरम् । कञऽपेक्षया क्रियाया
वध्यं जातम् । 8 क्रियाया एकत्वानेकत्वप्रकारेण । 9 कर्तृ द इत्यीथं इति पा० । (ब्या० प्र०) 10 न किमपि (काकुः)। 11 भट्टः (सौगतोक्तमसत्यम्)। 12 प्रत्यक्ष। 13 भावे। 14 क्तवति क्रियारूपस्य । (ब्य 15 प्रत्ययार्थो धात्वर्थाद्भिन्नः । 16 पुरुषव्यापारः। 17 क्रियातः। 18 प्रत्ययार्थस्य । 19 कर्तृ साध्यप्रत्ययत्वात् (भाट्टः)। 20 देवदत्तयज्ञदत्तौ। 21 भावरूपोधात्वर्थः ।
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