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[ कारिका ३
१०६ ]
अष्टसहस्री ब्दार्थ'प्रतिपत्तिः सकलजनप्रसिद्धा-अन्यथा' ततो बहिरर्थे' प्रतिपत्तिप्रवृत्तिप्राप्त्ययोगात् । न चार्थ वेदनादेवार्थे पुरुषस्यार्थिनः स्वयमेव प्रवृत्तेः शब्दोऽप्रवर्तक इत्येव वक्तुं युक्तम्-- 'प्रत्यक्षादेरप्येवमप्रवर्तकत्वप्रसङ्गात्--तदर्थेपि 'सर्वस्याभि लापादेव प्रवृत्तेः। 'परम्परया प्रत्यक्षादिप्रवर्तकमिति चेत् तथा वचनमपि प्रवर्तकमस्तु--विशेषाभावात्" । यथा च प्रत्यक्षस्य सलिलादिरर्थ:--तस्य तत्र प्रतीतेस्तथा वाक्यस्य भावना प्रेरणा वा तस्यैव तत्र प्रतीतेरबाध्यमानत्वात् ।
प्रत्यक्ष के विषयभूत पदार्थ का ज्ञान होता है तथैव संकेत सामग्री की अपेक्षा रखने वाले शब्द से ही शब्द के विषयभूत अर्थ का ज्ञान होता है और यह ज्ञान सकल जनों में सुप्रसिद्ध है। अन्यथा-यदि आप शब्द से बहिरंग घट पटादि पदार्थों का ज्ञान न मानों तब तो उन शब्दों से बाह्य पदार्थ का ज्ञान, उसमें प्रवृत्ति और उनकी प्राप्ति नहीं हो सकेगी और जहाँ पर बाह्य पदार्थ में प्रवृत्ति और प्राप्ति देखी जाती है वही शब्द का अर्थ है ऐसा समझना।
मावार्थ-शब्द से बाह्य पदार्थ का ज्ञान न मानने पर तो जलादि शब्द से बाह्य पदार्थ जलादि में प्यासे पुरुष को जलादि का परिज्ञान होना, उसके पास जाना, स्नान करना, पीना आदि रूप प्रवृत्ति और प्राप्ति कुछ भी नहीं हो सकेगी।
पदार्थ का ज्ञान होने से ही उस पदार्थ में उसके इच्छुक जनों की स्वयमेव प्रवृत्ति हो जाती है इसलिये शब्द अप्रवर्तक ही हैं ऐसा कहना भी शक्य नहीं है। अन्यथा प्रत्यक्ष आदि भी इस प्रकार से अप्रतक हो जावेंगे। क्योंकि प्रत्यक्ष के विषयभूत अर्थ में भी सभी मनुष्यों की शब्द से ही प्रवृत्ति देखी जाती है।
यदि आप कहो कि परम्परा से-प्रत्यक्ष से अर्थ का ज्ञान होता है उस अर्थ के ज्ञान से अभिलाषा होती है पुनः अभिलाषा से प्रवृत्ति होती है अत: परम्परा से प्रत्यक्षादि प्रवर्तक हैं।
ऐसा मानने पर तो उसी प्रकार से वचनों को भी परंपरा से प्रवर्तक मान लो दोनों में कोई अंतर नहीं है । अर्थात् शब्द से अर्थ का ज्ञान होता है उस ज्ञान से अभिलाषा होती है और उस
1 शब्दविषयार्थ। 2 शब्दाद् घटादिबाह्यपदार्थप्रतिपत्तिर्न भवति चेत्तदा ततः शब्दावहिरर्थे जलादो पिपासितादेः पुंसो जलादि परिज्ञानं, तत्समीपं गमनं, स्नानपानानयनादिरूपा तत्प्राप्तिश्च न घटते । 3 यत्र हि प्रतीतिप्रवृत्तिप्राप्तयः समधिगम्यते स शब्दार्थ इति वचनात् । (ब्या० प्र०) 4 संवेदना इति पा० । (ब्या० प्र०) 5 अन्यथा । 6 प्रत्यक्षार्थे । 7 नुः। 8 शब्दात् । अभिलाषादिति च क्वचित्पाठः। 9 प्रत्यक्षादर्थप्रतिपत्तिस्ततोभिलाषस्ततः प्रवृत्तिरिति । 10 भाट्टः। 11 शब्दार्थप्रतिपत्तिस्ततोऽभिलाषस्तत: प्रवृत्तिरिति । (ब्या० प्र०) 12 भावनाप्रेरणारूपस्यार्थस्य । 13 भावनाप्रेरणयोः।
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