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भावनावाद ]
प्रथम परिच्छेद
[ १०५
पुनर्बाह्यार्थतत्त्वनिबन्धनम् । तदुक्तम् ।--
वक्तृव्यापारविषयो योर्थो 'बुद्धौ प्रकाशते । 'प्रामाण्यं तत्र शब्दस्य नार्थतत्त्व निबन्धनम् ॥ इति वचनात् । ततो विवक्षारूढ एवार्थो वाक्यस्य, न पुनर्भावनेति प्रज्ञाकरः ।
[ प्रत्यक्षवच्छब्देनापि बाह्यपदार्थस्य ज्ञानं भवति ] 'सोपि न परीक्षकः-प्रत्यक्षादिव शब्दावहिरर्थप्रतीतिसिद्धेः' । यथैव हि प्रत्यक्षात्प्रतिपत्तप्रणिधान सामग्रीसव्यपेक्षात्प्रत्यक्षार्थप्रतिपत्तिस्तथा सङ्कतसामग्रीसापेक्षादेव शब्दाच्छ
नियोग नाम की कोई चीज ही नहीं है इस पर हमारा ऐसा कथन है कि "अग्निष्टोमेन यजेत्" वाक्य से संकेत को न समझने वाला कोई बालक या मूर्ख पुरुष भी यज्ञकार्य में नियुक्त हो जावे क्योंकि शब्द तो स्वभाव से ही नियोजक-प्रेरक हैं।
इस पर भाट्ट ने उत्तर दिया कि इस शब्द का यह अर्थ है कि पृथुबुनाकार-गोल-मटोल को घट कहना, कागज के पन्नों से सहित को पुस्तक कहना इत्यादि संकेत के अनुसार ही कार्य होता है अतः शब्द में संकेत को ग्रहण करने की योग्यता नहीं है क्योंकि संकेत को ग्रहण करने वाला ज्ञान है। अतः वेदवाक्य के द्वारा यज्ञ का संकेत ज्ञान में सहकारी कारण है । इस पर फिर बौद्ध बोल पड़ता है कि संकेत शब्दभावना और पुरुषभावना में व्यापार नहीं करता है वह संकेत अर्थ ज्ञान में व्यापार करता है और पदार्थ रूप अर्थ का ज्ञान होने से ही वह पुरुष जलादि में प्रवत्ति करता है। मतलब यह है कि शब्द, विवक्षा में आरूढ़ हुए अर्थ को कहते हैं। बौद्धों ने वही बात अपने ग्रन्थों में कही है कि वक्तागुरु के व्यापार का विषयभूत जो अर्थ श्रोता की बुद्धि में प्रकाशित हो रहा है उसी अर्थ को कहने में शब्द प्रमाणीक हैं किन्तु वास्तविक अर्थ-तत्त्व को कारण मानकर शब्द की प्रमाणता का कोई खास कारण नहीं है । वक्ता की बुद्धि सम्बन्धी व्यापार से जाना गया अर्थ यदि शिष्य की बुद्धि में प्रकाशित हो गया तो उस अंश में शब्द प्रमाण हैं बाह्य अर्थ हो या न हो कोई आकांक्षा नहीं है ।
[ प्रत्यक्ष के समान शब्द से भी बाह्य पदार्थों का ज्ञान होता है। ] भाट्ट- ऐसा कहने वाले आप प्रज्ञाकर बौद्ध भी परीक्षक नहीं हैं। प्रत्यक्ष के समान ही शब्द से बाह्य पदार्थ की प्रतीति होना सिद्ध है।
जिस प्रकार से प्रत्यक्ष से ज्ञाता के उपयोग रूप अंतरंग और बाह्य सामग्री की अपेक्षा से
1 बाह्यपदार्थस्वरूपकारणकम् । 2 श्रोतुर्बुद्धौ । 3 उपाध्यायव्यापारगम्यार्थशिष्यबुद्धिप्रकाशमानार्थे शब्दस्य प्रामाण्यम् । 4 बुद्धयारूढेर्थे । 5 बाह्यतत्त्व। 6 बौद्धः। 7 इतो भाट्टो वदति । 8 प्रत्यक्षविषयार्थ । 9 प्रतिपत्तिसिद्धेः इति पा० । (ब्या० प्र०) 10 एकाग्रता । (ब्या० प्र०)
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