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अष्टसहस्री
[ कारिका ३द्रष्टुं श्रोतुमनुमन्तुं ध्यातुं वा प्रवर्तते । तथा प्रवृत्त्यसम्भवे 'हात्मनः प्रेरितोहमित्यवगतिरप्रामाणिकी' स्यात् । ततो नासत्यो विधिर्येन प्रधानता तस्य विरुध्यते । नापि सत्यत्वे द्वैतसिद्धिः--आत्मस्वरूपव्यतिरेकेण तदभावात् तस्यैकस्यैव तथा प्रतिभासनादिति ।
__ [ भाट्टो नियोगपक्षमाश्रित्य पुनरपि विधिवादिनं दूषयति ] तदप्यसत्यम्-नियोगादि'वाक्यार्थस्यापि निश्चयात्मकतया प्रतीयमानत्वात् । तथा हि ।—नियोगस्तावदग्निहोत्रादिवाक्यादिव दृष्टव्योऽरेयमात्मेत्यादिवचनादपि प्रतीयते एव । नियुक्तोहमनेन वाक्येनेति निरवशेषो योगः 'प्रतिभाति--1°मनागप्ययोगाशङ्कानवतारादवश्यकर्त्तव्यतासम्प्रत्ययात् । कथमन्यथा तद्वाक्यश्रवणादस्य12 प्रवृत्तिरुपपद्यते--मेघध्व
देखने योग्य और दर्शन करने वाले से उसमें भेद नहीं है। अतः वह विधि मुख्य ही सिद्ध हो जाती है पुनः उस प्रकार के विधिरूप वेदवाक्य से आत्मा ही विधायक रूप से प्रतिभासित होता है एवं उसका दर्शन, श्रवण, अनुमनन और ध्यान रूप आत्मस्वरूप ही विधीयमान रूप से अनुभव में आता है । उस प्रकार से विधायक-आत्मा और विधीयमान-दर्शन श्रवण आदि कार्य में अभेद के हो जाने पर स्वयं आत्मा ही आत्मा को देखने, सुनने, अनुमनन करने अथवा ध्यान करने के लिये प्रवृत्त होता है उस प्रकार की प्रवृत्ति के संभव न होने पर "मैं प्रेरित हुआ हूँ" इस प्रकार का आत्मा का ज्ञान अप्रमाणिक हो जावेगा इसलिये विधि असत्य नहीं है कि जिससे उसकी प्रधानता विरुद्ध हो जावे । एवं सत्यरूप मानने पर द्वैत की सिद्धि भी नहीं होती है क्योंकि आत्मा के स्वरूप को छोड़कर अन्य कोई विधि भसंभव ही है। वह एक ही विधि विधायक और विधेय रूप से प्रतिभासित होती है।
[ यहाँ भावनावादी भाट्ट पुनरपि नियोगपक्ष का आश्रय लेकर विधिवादी को दूषण देता है ]
भाट्ट-यह आपका कथन भी असत् है क्योंकि नियोग और भावना भी वेदवाक्य के अर्थ हैं वे भी निश्चायक रूप से प्रतीति में आ रहे हैं। तथाहि-अग्निहोत्रादि वाक्य के समान ही "दृष्टव्योरेऽयमात्मा" इत्यादि वचन से भी नियोग प्रतीति में आ रहा है ।
___ "मैं इन वाक्यों से नियुक्त हुआ हूँ" इस प्रकार से निरवशेष योग रूप नियोग ही प्रतिभासित होता है क्योंकि किंचित् भी अयोग की आशंका की गुंजाइश ही नहीं है। अवश्यकर्तव्यता का ही ज्ञान हो रहा है एवं वही स्वीकार की गई है। अन्यथा उन वाक्यों के सुनने से ही इस मनुष्य की प्रवृत्ति कैसे हो सकेगी ? यदि आप कर्तव्यता के ज्ञान का अभाव होने पर भी उस वाक्य के सुनने से प्रवृत्ति होना मानोगे तब तो मेघ के शब्दादिकों से भी प्रवृत्ति का प्रसंग हो जाना चाहिये।
1 ता । (ब्या० प्र०) 2 प्रमितिः । 3 प्रामाणिका स्यात् । इति पा० । (ब्या० प्र०) 4 विधेरभावात् । 5 विधायकतया विधेयतया च। 6 भाट्टः। 7 आदिशब्देन भावना। 8 दर्शनश्रवणादावात्मसम्बन्धः । १ यतः । (ब्या० प्र०) 10 असंबंध । (ब्या० प्र०) 11 अभ्युपगमात् । (ब्या० प्र०) 12 नुः । 13 अन्यथा । कर्तव्यतासम्प्रत्ययाभावेपि तद्वाक्यश्रवणात्प्रवृत्तिरुपपद्यते चेत् ।
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