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________________ रसा - पृथ्वी | दारण - चीरनेकी क्रिया । सार - तीक्ष्ण । सीर - हल | ८२ नमामि - मैं नमस्कार करता हूँ, मैं वन्दन करता हूँ । वीरं - श्रीमहावीर प्रभुको । गिरि-सार- धीरं - मेरु- पर्वत जैसे स्थिर | भावावनाम - सुर- दानव -मानवेन - चूला - विलोल-कमलावलि - मालितानि - भक्तिपूर्वक नमन करनेवाले सुरेन्द्र, | दानवेन्द्र और नरेन्द्रोंके मुकुटमें स्थित चपल कमलश्रेणिसे पूजित । भाव - सद्भाव अथवा भक्ति । अवनाम-नमन । इन - - अथवा चपल । स्वामी । चूला - सिर शिखा । विलोल आवलि - श्रेणि । मालित पूजित | यह पद 'जिनराज - पदानि' का विशेषण है । 1 Jain Education International संपूरित - अच्छी तरह पूर्ण । अभिनत अच्छी तरह नमा हुआ । समीहित- अच्छी तरहसे इच्छित मनोवाञ्छित । कामं - बहुत, अत्यन्त । नमामि - मैं नमन करता हूँ । जिनराज पदानि - जिनेश्वरके चरणोंको । तानि-उन । - सुपद , बोधागाधं- ज्ञानद्वारा गम्भीर । बोध - ज्ञान । अगाध - गम्भीर । - पदवी - नोर पूराभिरामं - सुन्दर पद-रचनारूप जलके समूहसे मनोहर । सुपद - अच्छा पद । पदवीयोग्य रचना | पूर - समूह, अभिराम - सुन्दर । जीवाहिंसाविरल - लहरी संगमागाह - देहं - जीवदयाके सिद्धान्तोंकी अविरल लहरियोंके सङ्गमसे जिसका देह अतिगहन है । 1 अहिंसा - हिंसा से विरति । अविरल - संगम-मेल, सङ्गम । निरन्तर । लहरी - तरङ्ग । ज्वार संपूरिताभिनत - लोक - समोहितानि - जिनके प्रभावसे नमन करनेवाले लोगोंके मनोवाञ्छित | चूला - वेलं - चूलिकारूप अच्छी तरह पूर्ण हुए हैं । वाला । For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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