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________________ ८१ [ वसन्ततिलका ] भावावनाम - सुर- दानव - मानवेन चूला - विलोल - कमलावलि - मालितानि । संपूरिताभिनत - लोक - समीहितानि, कामं नमामि जिनराज - पदानि तानि ॥२॥ [ मन्दाक्रान्ता ] बोधागाधं सुपद - पदवी - नोर -पूराभिरामं, जीवाहिंसाविरल - लहरी - संगमागाह - देहं । चूला - वेलं गुरुगम - मणी - संकुलं दूरपारं, सारं वीरागम - जलनिधिं सादरं साधु सेवे || ३ | [ स्रग्धरा ] आमूलालोल - धूली- बहुल-परिमलाऽऽलीढ-लोलालिमालाझंकाराराव-सारामलदल- कमलागार - भूमी - निवासे ! | छाया - संभार - सारे ! वरकमल - करे ! तार- हाराभिरामे !, वाणी - संदोह - देहे ! भव - विरह - वरं देहि मे देवि ! सारं || ४ || शब्दार्थ संसार - दावानल - दाहनोरं संसाररूपी दावानलके तापको शान्त करनेमें जलके समान । दावानल - जङ्गलमें प्रकट हुई दाह-ताप । अग्नि । नोर-जल | प्र-६ Jain Education International संमोह - धूली - हरणे - अज्ञानरूपी धूलकी दूर करने में । संमोह-अज्ञान । समीरं - पवन, वायु | माया - रसा - दारण - सार - सीरं - मायारूपी पृथ्वीको चीरने में तीक्ष्ण हलके समान । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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