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हे नाथ! आपको प्रणाम करनेसे दुःखका नाश हो, कर्मका नाश हो, सम्यक्त्व मिले और शान्तिपूर्वक मरण हो ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो ।। ४ ।।
सर्व मङ्गलोंका मङ्गलरूप, सर्व कल्याणोंका कारणरूप और सर्व धर्मों में श्रेष्ठ ऐसा जैन शासन जयको प्राप्त हो रहा है ॥ ५ ॥ सूत्र-परिचय
श्रावक और साधु दिन एवं रात्रिके भागमें जो चैत्यवन्दन करते हैं, उसमें यह सूत्र बोला जाता है । मनका प्रणिधान करने में यह सूत्र उपयोगी है, इसलिये यह ‘पणिहाण-सूत्र' कहलाता है। इसमें वीतरागके समक्ष निम्न वस्तुओंकी प्रार्थना की जाती है:(१) भवनिर्वेद-फिर-फिरकर जन्म लेनेकी अरुचि ।। (२) मार्गानुसारिता-ज्ञानियोंद्वारा प्रदर्शित मोक्षमार्गमें चलनेकी शक्ति। (३) इष्टफल-सिद्धि-इच्छित फलकी प्राप्ति । (४) लोक-विरुद्ध-त्याग–अधिक मनुष्य निन्दा करें, ऐसे कार्योंका त्याग। (५) गुरुजनोंकी पूजा-धर्मगुरु, विद्यागुरु, बड़े व्यक्ति आदिकी पूजा। (६) परार्थकरण-परोपकार करनेकी वृत्ति । (७) सद्गुरुका योग । (८) सद्गुरुके वचनानुसार चलनेकी शक्ति । (९) वीतरागके चरणोंकी सेवा । (१०) दुःखका नाश । (११) कर्मका नाश । (१२) समाधि-मरण-शान्तिपूर्वक मृत्यु । (१३) बोधि-लाभ-सम्यक्त्वकी ( जैन धर्मको ) प्राप्ति ।
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