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________________ एअं-ऐसी परिस्थिति। | प्रधानं-श्रेष्ठ । तुह-आपको। सर्व-धर्माणां-सर्व धर्मोंमें । नाह !--हे नाथ ! पणाम-करणेणं-प्रणाम करनेसे। जैनं-जैन । सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं-सर्व मङ्ग- जयति--विजयी है, जयको प्राप्त लोंका मङ्गलरूप । सर्व-कल्याण-कारणम-सर्व हो रहा है। ___ कल्याणोंका कारणरूप। शासनम्-शासन । अर्थ-सङ्कलना हे वोतराग प्रभो ! हे जगद्गुरो ! आपकी जय हो । हे भगवन् ! आपके सामर्थ्य से मुझे संसारके प्रति वैराग्य उत्पन्न हो, मोक्षमार्गमें चलनेकी शक्ति प्राप्त हो और इष्टफलको सिद्धि हो (जिससे मैं धर्मका आराधन सरलतासे कर सकूँ ) ॥१॥ हे प्रभो ! ( मुझे ऐसा सामर्थ्य प्राप्त हो कि जिससे ) मेरा मन लोकनिन्दा हो ऐसा कोई भी कार्य करनेको प्रवृत्त न हो, धर्माचार्य तथा मातापितादि बड़े व्यक्तियोंके प्रति परिपूर्ण आदर-भावका अनुभव करे और दूसरोंका भला करनेको तत्पर बने । और हे प्रभो! मुझे सद्गुरुका योग मिले, तथा उनकी आज्ञानुसार चलनेको शक्ति प्राप्त हो । यह सब जहाँतक मुझे संसार में परिभ्रमण करना पड़े, वहाँ तक अखण्ड रीतिसे प्राप्त हो ॥२॥ हे वीतराग ! आपके प्रवचनमें यद्यपि निदान-बन्धन अर्थात् फलकी याचनाका निषेध है, तथापि मैं ऐसी इच्छा करता हूँ कि प्रत्येक भवमें आपके-चरणोंकी उपासना करनेका योग मुझे प्राप्त हो ॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001521
Book TitlePanchpratikramansutra tatha Navsmaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Sahitya Vikas Mandal Vileparle Mumbai
PublisherJain Sahitya Vikas Mandal
Publication Year
Total Pages642
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, Worship, religion, & Paryushan
File Size23 MB
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