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शब्दार्थजय-आपकी जय हो। | आभवं-जहाँतक संसारमें परिवीयराय ! हे वीतराग प्रभो! भ्रमण करना पड़े वहाँतक । जग-गुरु ! हे जगद्गुरो ! अखंडा-अखण्ड रीतिसे । होउ-हो।
वारिज्जइ-निषेध किया है । ममं-मुझे।
जइ वि-यद्यपि । तुह-आपके ।
नियाण-बंधणं- निदान -बन्धन, प्रभावओ-प्रभावसे, सामर्थ्यसे ।
फलकी याचना। भयवं!-हे भगवन् !
वीयराय !-हे वीतराग ! भव-निव्वेओ-संसारके प्रति तुह-आपके। वैराग्य।
समये-शास्त्रमें, प्रवचनमे । मग्गाणुसारिआ- मोक्षमार्गमें
तह वि-तथापि । चलनेकी शक्ति ।
मम-मुझे । इट्टफल-सिद्धी-इष्टफलकी सिद्धि । हज्ज-प्राप्त हो । लोग-विरुद्ध-च्चाओ-लोक- सेवा-उपासना ।
निन्दा हो ऐसी प्रवृत्तिका त्याग, भवे भवे-प्रत्येक भवमें। लोकनिन्दा हो ऐसा कोई भी | तुम्ह-आपके।
कार्य करनेके लिये प्रवृत्त न होना। चलणाणं-चरणोंकी। गुरुजण-पूआ-धर्माचार्य तथा दुक्ख-खओ-दुःखका नाश ।
मातापितादि बड़े व्यक्तियोंके | कम्म-खओ-कर्मका नाश ।
प्रति परिपूर्ण आदर-भाव। | समाहि-मरणं-शान्तिपूर्वक मरण। परत्थकरणं-दूसरोंका भला करने- च-और । की तत्परता ।
बोहि-लाभो-बोधि-लाभ, सम्यच-और।
क्त्वकी प्राप्ति । सुहगुरु-जोगो-सद्गुरुका योग। अ-और। तव्वयण-सेवणा-उनकी आज्ञा- संपज्जउ-उत्पन्न हो। नुसार चलनेकी शक्ति ।
। मह-मुझे।
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