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पाँच ही हैं, इसलिये अधिक गाथावाले जो स्तोत्र मिलते हैं, वे बादमें बने हुए हैं। +
१८ परिणहारण--सुत्त [ 'जय वीयराय'--सूत्र ]
मूल
[ गाहा ] जय वीयराय ! जग-गुरु !, होउ ममंतुह पभावओ भयवं!। भव-निव्वेओ मग्गाणुसारिआ इट्ठफल-सिद्धी ॥१॥ लोग-विरुद्ध-चाओ, गुरुजण-पूआ परत्थकरणं च । सुहगुरु-जोगो तव्वयण-सेवणा आभवमखंडा ॥ २ ॥ वारिज्जइ जइ वि नियाण-बंधणं वीयराय ! तुह समये । तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥३॥ दुक्ख-खओ कम्म-खओ, समाहि-मरणं च बोहि-लाभो । संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम-करणेणं ॥४॥
[ अनुष्टुप् ] सर्व-मङ्गल-माङ्गल्यं, सर्व-कल्याण-कारणम् । प्रधानं सर्व-धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५॥
+ ‘उवसग्गहरं ' स्तोत्रका विशेष रहस्य जाननेके लिये देखियेप्रबोधटीका भाग पहला, सूत्र १७ ।
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